पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२६७

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  1. विवाह-संस्था ।

सभामे बुलाना चाहिये और न उसकी द्रौपदी परको सना छूट गई और उसका फजीहत करनी चाहिये । चमत्कारका उज्र न किया जा सकता था। और जो काम प्रादुर्भाव भी इतनेके हो लिए हुआ करता नल राजाने भी नहीं किया वहीयुधिष्ठिर- है। चमत्कार होनेका यह मतलब नहीं ने किया, इसके लिए भीष्म क्या करें? माना जा सकता कि जो चाहे हो सकता भीष्मने उस समय भी अपना आचरण है। यदि ऐसामान लिया जाय तो द्रौपदी- धर्म और न्यायकी तुलासे बहुत ही ठोक ने अपने पातिव्रतकी पुण्याईसे दुश्शासन रखा । भीष्मने यहाँ भारती आर्योंको और दुर्योधन आदि सभी दुष्टोंको भस्म दिखला दिया कि पति-पत्नीके सम्बन्धकी कर डाला होता और फिर भयङ्कर युद्ध उदात्त कल्पना कहाँतक पहुँचती है और होनेकी नौबत ही न पाती । परन्तु चम- महाभारतके समयसे लेकर आज हज़ारों कारोंकी उत्पत्ति सृष्टि-क्रममें सिर्फ वर्षतक पति-पत्नीके नातेके सम्बन्धमें यही उतनी ही अनिवार्य दिक्कनसे बचनेके लिये उदात्त भाव भारती स्त्रियोंके हृदय और होती है : पाठकोंको इस तत्त्व पर ध्यान आचरणमें पूर्णतया जमकर बैठ गया है, रखना चाहिये । चमत्कारसे द्रौपदीकी । सो ठीक है। आबरू बच गई और इसी कारण उसके ऐसा होते हुए यह आश्चर्य है कि विषयमें सभीके मनमें पूज्य बुद्धि उत्पन्न सिकन्दग्के साथ आये हुए युनानी इति- हो गई। अस्तु; इस चमत्कारके द्वारा धर्म- हासकारीने भारती स्त्रियोंके सद्गणों के रूपी ईश्वर यह अधर्मरूपी उत्तर कभी सम्बन्धमें कुछ प्रतिकूल लेख अपने ग्रन्यो- नहीं देगा कि द्रौपदी दासी नहीं है। पति- में लिख छोड़े हैं। एक स्थान पर लिखा पत्नीके नातेके सम्बन्धमें महाभारतने जो है कि-"हिन्दुस्तानी लोग अनेक स्त्रियाँ उदात्त कल्पनाएँ भारती स्त्री-पुरुषोंके रखते हैं। कुछ तो नौकरी-चाकरी करानेके मनों में प्रतिबिम्बित कर दी हैं, उन्हें इसके लिये, कुछ ऐश-आरामके लिये और कुछ विपरीत धारणासे, धका लगेगा। द्रौपदीके | लड़की-बच्चोंसे घरको भर देनेके लिये। बुटकारके सम्बन्ध में भीष्म निर्णय न कर परिणाम यह होता है कि यदि त्रियों के सकते थे और यही ठीक था। और ऐसी सदाचारकी रक्षा ज़बर्दस्ती न की जाय अड़चनके मौके पर राजाको ही अपने तो वे बुरी हो जाती हैं ।” सारी दुनिया- राजाकी हैसियतके-अधिकारोका प्रयोग का अनुभव यही है कि जहाँ छोटेसे करना चाहिए था। महाभारतमें वर्णित अन्तःपुरमें अनेक स्त्रियोको बन्द करके है कि धृतराषने ऐसा ही किया। भीम- रखनेकी प्रथा है, वहाँ इस ढंगका परि- को यह अधिकार न था, भीष्म तो प्रधान णाम न्यूनाधिक अंशोंमें देख ही पड़ेगा। अथवा न्यायाधीश थे। सारांश, द्रौपदीके परन्तु प्राचीन समयमें क्षत्रिय स्त्रियोंको वल-हरणवाली घटना न तो प्रक्षिप्त है घरमें बन्द करके रखनेकी प्रथा न थी; और न वह उस आक्षेपके ही योग्य है जो स्त्रियोंको बहुत कुछ स्वाधीनतासे तथा किइस सम्बन्धमें कुछ लोग भीष्मके उदात्त खुलकर बाहर निकलने और घूमने चरित्र पर करते हैं । धूत-मदसे अन्ध फिरनेका अवसर मिलता था । उल्लिखित होकर युधिष्ठिर अपने आप गड़े में गिरे यूनानी मतका कारण हमारी समझमें और अन्य पाण्डवोंने भी उन्हें ठीक समय' यह आता है कि हर देशवालों में दूसरे पर मना नहीं किया। इस कारण उनकी देशकी स्त्रियों के सद्गुणोंके सम्बन्ध प्रति- ३१