___ महाभारतमीमांसा ® सिद्ध है। मेगास्थिनीज़ने चन्द्रगुप्तके | कारों के प्रमाणके अधार पर किया गया है। समयका जो वर्णन किया है, उसमें अब उसका संक्षिप्त सिंहावलोकन करके इस बातको उसने स्पष्टतया लिख । वर्तमान परिस्थितिके साथ उसकी तुलना दिया है। महाभारतके समयके पश्चात् करते हैं। (१) बहुत पुराने जमानेमें भी, कई शताब्दियोतक, यह नियम बना विवाहका बन्धन बहुत कड़ा न था । रहा। गुप्तकालीन शिलालेखोंमें भी, श्वेतकेतुने इसे शुरू किया। उसने नियम ब्राह्मणोंके क्षत्रिय स्त्रियोंको ब्याहनेके कई कर दिया कि यदि पत्नी व्यभिचार करे तो दृष्टान्त है । बाण कविने हर्षचरित्रमें उसे भ्रूण-हत्याका पाप लगेगा । विवाहके अपने पारशव भाईके होनेकी बात लिखी दृढ़-बन्धनका पाया यही है। उसने यह है। तात्पर्य, ब्राह्मण कुछ महाभारतके भी उच्चतम नियम बना दिया कि यदि समयमें ही अपनेसे नीचेवाले वाँकी पति व्यभिचार करे तो यही पाप उसे भी स्त्रियाँ ग्रहण न करते थे, किन्तु उसके होगा: किन्तु वह आजकल बहुधा मान्य पश्चात् कई सदियोतक यह सिलसिला नहीं है। (२) बहुत प्राचीन समयमें जारी था । पहलेपहले ब्राह्मण, क्षत्रिय नियोगकी प्रथा थी, किन्तु स्त्रियों के पाति- और वैश्य-तीनों जातिकी स्त्रियोस । व्रतकी उच्च कल्पनाओंन उस बन्द कर उत्पन्न सन्तान ब्राह्मण ही समझी जाती । दिया। न वह महाभारतके समय थी थी। परन्तु फिर आगे,महाभारतके समय, और न इस समय है। (३) प्राचीन कालमें ब्राह्मण और क्षत्रिय स्त्रियोसे उपजी दीर्घतमाने त्रैवर्णिक स्त्रियोंके लिये पुनर्वि- सन्तति ही ब्राह्मण मानी जाती थी। वाहकी मनाहो कर दी। यह आशा, पाति- महाभारत-काल और उसके पश्चात्तक व्रतकी ही उच्च कल्पनाओं के कारण,भारती यह नियम था । गुप्त-कालमें, इस नियममें आयौँमें मान्य हो गई। उच्च वर्णकी स्त्रियाँ, भी काट-छाँट हुई होगी और यह अनुमान महाभारतके समय, पुनर्विवाह न करती होता है कि ब्राह्मण पति द्वारा क्षत्रिया थीं । यदि कोई कर लेती थी तो वह हीन, स्त्रीसे उत्पन्न सन्तान क्षत्रिय ही मानी शूद्रतुल्य समझी जाती थी। हिन्दुसमाजमें आने लगी। धीरे धीरे गुप्त-कालके पश्चात् यह धारणा अबतक बनी है । (४) एक यह बात भी न रही। धर्मशास्त्रको यह स्त्रीके अनेक पति न हो सकते थे, परन्त मर्यादा हो गई कि प्रत्येक वर्ण अपने ही। एक पतिको अनेक पलियाँ करनेका अधि- वर्णमें विवाह करे। प्रतिलोम विवाह तो : कार प्राचीन समयसे लेकर महाभारतके पहलेसे ही बन्द थे। बड़ा सख्त नियम समयतक था । बहुपत्नीकत्वका चलन था कि नीचेके वर्णका पुरुष अपनेसे उच्च । पूर्व समयमें बहुत अधिक रहा होगा। वर्णकी स्त्री ग्रहण न करं। एसे समागमसे किन्तु महाभारतके समय वह घट गया उपजी हुई सन्तान वर्णबाह्य निषाद- था और अब भी बहुत कम है। (५) चाण्डाल आदि जातियों में गिनी जातीथी। बहुपतित्वकी प्रथा अति प्राचीन समयमें क्वचित् थी: आगे चलकर वह नष्ट हो सिंहावलोकन । गई और इस समय भी उसका चलन महाभारतकालीन भारतीय पार्योंकी नहीं है । (६) प्राचीन कालसे लेकर महा- विवाह-संस्थाका वर्णन यहाँतक महा- भारतके समयतक विवाहमें कन्याके अनुप- भारत और तत्कालीन यूनानी इतिहास- भुक्ता रहनेका आग्रह था और वेसाही
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महाभारतमीमांसा