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- विवाह-संस्था ।
२३३ अथवा पारसी हैं । पहले लिखा गया है था ।” ऊपर शल्यका जो उत्सर उद्धृत है, कि शर्मिष्ठा असुर-कन्या थी। 'जंद' आयो- उससे प्रकट है कि भारती पार्यों में विवाह- में प्रचलित विवाहकी यह प्रथा भारती का यह भेद तभीसे निन्द्य माना जाता आर्यों में भी थी। महाभारतके कई उदा- था । आजकल भी यद्यपि कुछ जातियों में हरणोंसे यह बात स्पष्ट देख पड़ती है। प्रासुर विवाह प्रचलित है तो भी उसे पजावकी कुछ जातियों में श्रासुर विवाह ! लोग अप्रशस्त ही मानते हैं। हुआ करते थे। इनमें, भारतके समय, राक्षस। मद्र और केकय जातियों विशेष थी। इस वंशकी त्रियोंको खासकर मध्य देशके विवाहका पाँचवाँ भेद राक्षस विवाह क्षत्रिय गजा ग्रहण करनेथे।पागडुके वास्ते है। यह खासकर राक्षसोंमें होता था, माद्री-शल्यकी बहिन के लिये जानेका इस कारण इसका नाम राक्षस पड़ा। धर्णन महाभारतमें है । यहाँ पर वह इस विवाहमें कन्या पक्षवालोसे लड़कर, उद्धृत करने लायक है। पाराडु राजाका प्रतिपक्षियोंको गेते-पीटते छोड़, विलाप दूसरा विवाह करनेके लिए शल्यके नगर- करती हुई कन्याको ज़बर्दस्ती ले आते थे। में भीष्म गये। उन्होंने शल्यसे कहा कि पहले दिग्दर्शन किया जा चुका है कि माद्रीका विवाह पागडु के साथ कर दो। राक्षस कौन लोग थे। हिन्दुस्थानमें मूल उस समय शल्यने उत्तर दिया-"हमारे निवासियोंकी नरमांस भक्षण करनेवाली कुलाचारको आप जानते ही हैं । हमें वह जो कुछ जातियाँ लङ्कासे फैली हुई थी, वन्दनीय है। उसे मैं अपने मुंहसे कहना उनमें विवाहका यह भेद था । रावण- नहीं चाहता।" तब भीप्मने उसकी शर्त कृत सीताहरणसे यह बात स्पष्ट हो जाती मानकर सोनेके जेवर, रत्न और हाथी, है। इस प्रकारका विवाह क्षत्रियोंको बहुत घोड़े, कपड़े, अलङ्कार, मणि और मोती भाया होगा: क्योंकि इसमें वही लोग श्रादि देकर उसे सन्तुष्ट किया । इसके अपने सामर्थ्यका उपयोग कर सकते अनन्तर शल्यने अपनी बहिन उनके थे जो युद्ध-विद्यामें निपुण होते थे । अधीन कर दी। इसी प्रकारका वर्णन महाभारतमें इसका प्रसिद्ध उदाहरण रामायणमें दशरथ-कैकेयीक विवाहका है। सुभद्रा-हरण है । अर्जुनने श्रीकृष्णकी कैकेयीके पिताको सारा गज्य अर्पण कर सलाहसे सुभद्राका हरण किया । इसमें दशरथने कैकेयीको प्राप्त किया था । किसी तरह सुभद्राके अनुमोदनका अंश तात्पर्य यह कि पूर्वसमयमें श्रासुर विवाह न था। उस समय श्रीकृष्णने अर्जुन- क्षत्रियों में प्रचलित था। स्वासकर जिन से कहा-"क्षत्रिय स्वयम्वर-विधिसे क्षत्रियोंका सम्बन्ध असुरोंसे था, उनमें विवाह करे, यह उत्तम है; परन्तु स्वय. यह प्रथा कुल-परम्परासे चली आई थी। म्यर किया जाय तो न जाने सुभद्रा किल- यूनानी इतिहासकार साफ़ लिखते हैं कि के गले में जयमाल डाल दे । अतएव शुर पञ्जाबमें महाभारततक यह रीति प्रचलित क्षत्रियोंके पक्षमें स्त्रीको बलात्कारसे हर थी। उन्होंने लिखा है-“तक्षशिला नगरी- ले जाना उत्तम मार्ग है ।" सारांश, में युवती कन्याएँ बाज़ारमें बेचनेके लिए गक्षस विवाहको क्षत्रिय लोग खूब पसन्द लाई जाती थीं और जो सबसे अधिक करते थे। काशिराजकी बेटियाँ-अम्बा, कीमत देना था उसीके हाथ सौदा होना अम्बिका, अम्बालिका–स्वयम्बर कर रही ३०