ॐ विवाह-संस्था। २२४ द्रौपदीको छोड़-दूसरी महिषी अथवा कर शार्ङ्गधनुष प्राप्त करनेका उल्लेख है। स्त्रीका वर्णन कहीं नहीं पाया जाता। परन्तु वहाँ सोलह हज़ार ही लियोके (आदि पर्वके 8वें अध्यायमें युधिष्ठिरकी मिलनेका वर्णन किया गया है। तब कहना दूसरी स्त्री देविका कही गई है। उसका होगा कि हरिवंशने एक जगह सौ लियाँ विचार आगे किया जायगा।) इससे कह और बढ़ा दी । ये एकदम प्राप्त हुई सारी सकते हैं कि एकपत्नीव्रतकी महत्ता महा- स्त्रियाँ मानवी न थीं, कमसे कम उनका भारत-प्रणेताको भी मान्य थी । महा- आर्य न होना प्रकट है। और, यह संख्या भारत और रामायण, दोनों आद्य राष्ट्रीय अतिशयोक्तिकी है। जैन-प्रन्थों में भी जो ग्रन्थोके आद्यवर्ण्य पुरुष युधिष्ठिर और इस संख्याका बारबार उल्लेख किया गया राम एकपत्नीव्रतके पुरस्कर्ता हैं। इससे है, सो वह भी इसीसे । किसी सुखी पाठक कल्पना कर सकते हैं कि भारतीय ' राजाके वैभवका वर्णन करनेके लिये जैन आर्य एकपत्नीव्रतको कितना गौरव देते थे। ग्रन्थ उसकी सोलह हज़ार स्त्रियाँ बतलाते श्रीकृष्णके सम्बन्धमें यहाँ थोडासा ' है । सारांश, यह संख्या अतिशयोक्तिको उल्लेख करना आवश्यक है। समझा जाता है। बाइबिलमें वर्णन है कि सालोमनके है कि उनके १६१० रानियाँ थीं। इनमेंसे हज़ार स्त्रियाँ थीं। हमारी रायमें श्रीकृष्ण- पाठ तो पटरानियाँ थीं और शेष स्त्रियाँ की पाठ आर्य स्त्रियाँ थीं: इनके सिवा उनको एकदम मिल गई थीं। महाभारत- उनके अनेक (न कि सोलह हजार) और में श्रीकृष्णकी सोलह हज़ार स्त्रियोका दो देव-राक्षसोंकी काल्पनिक स्त्रियोंका होना तीन जगह उल्लंख है, इसका निर्देश आगे मान लेना युक्तिसङ्गत होगा। किया जायगा । यह कहने में क्षति नहीं कि आदि पर्वके 8वें अध्यायमें पहले श्रीकृष्णकी स्त्रियोंकी यह संख्या अति- ' युधिष्ठिरकी देविका नामक दृसरी स्त्रीका शयोक्तिकी होगी। हरिवंश वि० के ६०वें जो कथन किया गया है वह आश्चर्यकारक अध्यायमें श्रीकृष्णको पाठ स्त्रियाँ बतला- है। न वह छोड़ा जा सकता है और न कर नवीं एक शैव्या कही गई है। इसीमें ग्रहण किया जा सकता है। उसका उल्लेख और सोलह हज़ार स्त्रियों के विवाह किये । और कहीं नहीं है: वन अथवा आश्रम- जानेकी बात कही गई है। इसका विशेष ! वासी पर्वमें भी नहीं है। यह ब्याह कब उल्लेख आगे ६३वें अध्यायमें है। नरका-हुश्रा, इसका भी कहीं उल्लेख नहीं है। हम सुरने सोलह हज़ार एक सौ कन्याओंको तो यही कहेंगे एक इसे पीछेसे सौतिने हरणकर कैद कर रखा था। ये सभी बढ़ाया। अनुपभुक्ता थीं। नरकासुरको मारकर .. श्रीकृष्णने उन्हें जीत लिया: तब उन्होंने एक स्त्रीका अनेक पति करना। अपनी खुशीसे श्रीकृष्णको वर लिया। अस्तु: अनेक स्त्रियोंसे एक पुरुषके ऐसी यह कथा है। अर्थात् श्रीकृष्णको विवाह करनेकी रीति वैदिक कालसे और भी सोलह हजार एक सौ स्त्रियाँ लेकर महाभारतके समयतक, न्यूनाधिक एकदम मिल गई। परन्तु अन्यत्र सोलह परिमाणोंमें, प्रचलित थी: परन्तु एक स्त्रीके हज़ार स्त्रियोंका ही उल्लेख बारबार आता , अनेक पति करनेकी प्रथा शुरू शुरूमें उन है, और भी सौ स्त्रियोंका नहीं । उद्योग : चन्द्रवंशी आर्योंमें थी जो हिमालयसे नये पर्वके १५८वें अध्यायमें नरकासुरको मार. नये आये थे। द्रौपदीके उदाहरणमे यह
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