पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२४७

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  • विवाह-संस्था।*

- एक पव पति र्या यावज्जीवपरायणम। होते होंगे वे लोक-प्रशस्त अथवा जाति- मृते जीवति वा तस्मिन्नापरं प्राप्नुयाभरम्॥ मान्य न होते होंगे । जिस समय नसम्मे (आदिपर्व १० १०४) दमयन्तोकी भेंट हुई उस समय नलने इस कथाका तात्पर्य थोड़ा-बहुत आँखोंमें आँसू भरकर यही प्रश्न किया- वही है जैसा कि ऊपर लिखा गया है। कथं तु नारी भर्तारमनुरक्तमनुषतम् । दीर्घतमा ऋषिका बनाया हुआ, पुन- उत्सृज्य वरयेदन्यं यथान्वंभीरु कर्हि चित्॥ विवाहका यह बन्धन भारतीय प्रायोंमें दूताश्वरन्ति पृथिवीं कृत्स्नां नृपतिशासनात्। सहसा चल न सकता । क्योंकि दीर्घः । भैमी किल म भर्तारं द्वितीयं वरयिष्यति ॥ तमाको जिस कठिनाईका अनुमान हश्रा स्वैरवृत्ता यथाकाम मनुरूपमिवात्मनः ।। वह सभी समाजोंके लिये एक ही सा उप- • (धन०१०७६) युक्त है। परन्तु अन्य हजारों समाजोंमें : “भर्ता के लिए अनुव्रत रही हुई कौन इस बन्धनका प्रचार नहीं हुआ। हमारी सी स्त्री दूसरे पुरुषसे विवाह करेगी? तो यह राय है कि भारतीय स्त्रियोंके अन्तः- और तेरे दृत तो पृथिवी पर कहते फिरते करणमें पातिव्रतकी जो उदात्त कल्पना है कि खतन्त्र व्यवहार करनेवाली दमयन्ती दृढ़ हो गई थी, उसीके कारण दीर्घतमा- अपने अनुरूप दुसरा भर्ता करेगी।" इस का बनाया हुश्रा नियम भारतीय श्राोंमें; वाक्यम 'स्वतन्त्र व्यवहार करनेवाली शब्द चल निकला । दीर्घतमा वैदिक अपि है. महत्त्वके हैं । इसमें स्पष्ट कह दिया गया तब यह बन्धन भी बहुत प्राचीन होगा। है कि दूसरा पति करना स्वच्छन्द व्यवहार अब यहाँ पर प्रश्न होता है कि यदि करना है । दमयन्तीने इसका जो उत्सर यह बन्धन प्राचीन कालमे था, तो पनि- दिया उसमें भी यही भाव व्यक्त है। वताओंमें श्रेष्ठ दमयन्ती दसग विवाह "तुम्हे यहाँ बुलानेके लिए मैंने इस यूक्तिः करनेके लिए क्योंकर तैयार हो गई थी? से काम लिया । क्योंकि और कोई यदि आर्यों अर्थात् , ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों- मनुष्य, एक दिनमें, सो योजन नहीं जा में पुनर्विवाह प्राचीन कालमें निषिद्ध । सकता। मैं तुम्हारे चरणों की सौगन्द था, तो फिर दमयन्ती दुबारा स्वयम्बर खाकर कहती है कि मैंने मनमें और कोई करनेके लिए कैसे उद्यत हो गई: अथवा बुरी बात नहीं सोची है । जो मैं पाप पिताने ही उसे किस तरह अाशा दे दी: करती होऊँ तो यह वायु मेरे प्राणोंका और राजा लोग भी उसके दूसरे स्वय- . नाश कर दे।" मतलब यह कि यदि दम- म्वरके लिए क्योंकर एकत्र हुए ? इस यन्ती पुनर्विवाह कर लेती तो वह पाप प्रश्नका उत्तर ज़रा कठिन है। ऐसा जान · होता और स्वच्छन्द व्यवहार भी। अर्थात् पड़ता है कि उस समय हिन्दुस्थानमें पुन- उस समय आर्य क्षत्रिय स्त्रियोका पुन- र्विवाह कुछ बिलकुल ही बन्द न था। विवाह न होता था। फिर दमयन्तीके तो वर्गाको छोड़ अन्य वर्गों में और खास- । लड़के-बच्चे भी हो चुके थे । यदि वह कर शूद्रोमें उसका चलन रहा ही होगा। पुनर्विवाह करती तो अपनी जातिसे नीचे शूद्रोंके तथा औरॉके अनुकरणसे कुछ , दर्जेकी जातिकी हो जाती। इतके समय प्रार्य स्त्रियाँ स्वच्छन्द व्यवहार कर पुन- जब द्रौपदीको दासी-भाव प्राप्त हो गया र्षिवाहके लिए तैयार हो जानी होगी। तब दुर्योधनने ऐसा ही कहा-“हे द्रौपदी! किन्तु पार्यों में जो ऐसे क्वचित् पुनर्विवाह | अब तू दुसरे पनि कर ले।" अर्थात् यह