पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२४१

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  1. शिक्षा पद्धति

थी कि ऐसी विद्या पूर्ण हुए बिना विवाह | अपने घर पर ही शिक्षा दी जाती थी। न हो सकता था। सारांश यह कि आज- पितासे, भाईसे अथवा वृद्ध सन्मान्य कल जिस तरह आश्रम-सङ्कर न होने । अागत पुरुषोंसे उनको शिक्षा मिलती देनेका कोई ख़यालतक नहीं करता वैसी रही होगी। अनुमान यह है कि स्त्रियोंको बात उन दिनों न थी। कुछ विद्याएँ ऐसी वेदोंकी शिक्षा न दी जानी होगी, क्योंकि थी जो प्रौढ़ अवस्था में ही विशेष व्यासङ्गसे वेद पढ़ानेके लिये उनके उपनयन आदि प्राप्त हो सकती थीं और खूब बढ़ाई जा संस्कार होनेका वर्णन कहीं नहीं सकती। उन्हें सीखनेके लिये राजाकी । पाया जाता । मनुका एक यह वचन ओरसे दक्षिणाओंके रूपमें उत्तेजन देनेका प्रसिद्ध है-"पुराकल्पे तु नारीणां प्रबन्ध था और सिखलानेवाले आचार्यको मौञ्जीबन्धनमिप्यते ।" किन्तु भारती घर रखनेकी पद्धति थी। इस तरह, कालमें इस रीतिके प्रचलित होनेका वर्णन प्रजाकी शिक्षाके लिये राजाकी श्रोरसे महाभारतमें नहीं है। उनकी शिक्षा इतनी समुचित प्रबन्ध रहता था। निष्कर्ष यह ही होगी कि उन्हें मामूली लिखना-पढ़ना है कि मुख्य रूपसे शिक्षाका भार ब्राह्मण- : आ जाय: वे धार्मिक कथाओं और समूह पर था और राजाकी श्रोरसे उन्हें विचारोको भली भाँति जानकर प्रकट कर अप्रत्यक्ष रूपसे सहायता मिलतीरहती थी। सके, और कुछ धार्मिक ग्रन्थोंका पठन कर लें। स्त्री-शिक्षा। स्त्रियाँ सहधर्मचारिणी अर्थात् पतिके अब स्त्रियों की शिक्षाका विचार किया साथ वैदिक क्रिया करनेकी अधिकारिणी जाता है। महाभारतके समय उश्च वर्णकी थी; परन्तु उन्हें वेदविद्या नहीं पढ़ाई जाती खियाको शिक्षा देनेकी गति तो निःस- थी। महाभारतमें, उनके स्वतन्त्र रुपले न्देह देख पड़ती है। ये स्त्रियाँ लिख-पढ़ वैदिक क्रिया करनेका भी वर्णन नहीं है। सकती होंगी । यह शिक्षा उच्च कोटिकी विगट पर्वमें जो वर्णन है उससे ज्ञात भी होती थी । द्रौपदीके वर्णनमें पगिडता होता है कि मामूली लिखने-पढ़नेको और शब्दका प्रयोग पाया जाता है। धर्मकी शिक्षा उन्हें दी जाती थी और प्रिया च दर्शनीया च पण्डिताच पतिव्रता। महाभारत कालमें क्षत्राणियोंको ललित (वन० ० २७) कलाओंकी भी शिक्षा दी जाती थी। विगट- यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि यह शिक्षा की कन्या उत्तराका गीत, नृत्य और दी कहाँ जाती थी । यह नो निर्विवाद वादित्र सिखलानके लिये बृहन्नडाको है कि स्त्रियोंके लिये शालाएँ न थीं। ऐसी नियुक्त किया गया था। इस वर्णनसे शालाओंका कहीं वर्णन नहीं है । द्रौपदीने : स्पष्ट है कि प्राचीन कालमें तत्राणियोंको यधिष्ठिरसे जी भाषण किया है वह सच-गाना और नाचना भी सिखलाया जाता मच ऐसाही है जैसा कि परिडतानीका था। आजकल स्त्रियांका गीत-नत्य सिम्ब- होना चाहिये। यह शिक्षा प्राप्त करनेके लाना निन्द्य माना जाता है, परन्तु महा. लिये वह कहीं मदरसे में गई हो, इसका ! भारतके समय तो वह क्षत्रियोंकी बेटियों- वर्णन नहीं मिलता। उसने कहा है कि यह को सिखलाया जाता था। इसकी शिक्षा. बात "मैंने पिताके यहाँ रहते समय एक के लिये विराटके महलोंमें अलग एक ऋषिसे सुनी थी ।" अर्थात् स्त्रियोंको नृत्यशाला बनवाये जानेका वर्णन है। यह