पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२२१

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ॐ वर्ण-व्यवस्था । १६५ हुआ। इन जातियोंका नाम “सूतवैदेह- नाम सैरन्ध्र है। इस जातिके पुरुषोंका मागधाः' इस प्रकार सदा एकत्र । पेशा राजाओंके अलङ्कार और पोशाककी मिलता है। व्यवस्था करना, उबटन लगाना और पैर उच्च वर्णकी स्त्रियों में शूद्रसे जो सन्तान दाबना श्रादि था; और स्त्रियोंका काम उपजी उसके पेशेकी व्यवस्था अब देखनी इसी तरह रानियों की सेवा करना था। चाहिए । वैश्य स्त्रीके शुद्र पुरुषसे उपजी लिखा है कि यह सन्तान दर-असल दास- हुई सन्ततिको आयोगव कहते थे। यह कुलकी न थी, परन्तु इसके लिए सेवा- जाति बहत निन्द्य नहीं समझीगई क्योंकि वृत्ति करनेका ही नियम था। सैरन्धी वैश्य और शूद्र वर्ण पास पास हैं। बढ़ई- जातिके सम्बन्धमें दो एक बाते और गिरीइनका पेशा हुश्रा। क्षत्रिय स्त्रोके शुद्रसे लिखी जाती हैं। आर्य वर्णके पति और उत्पन्न सन्तान अधिक निन्द्य निषाद जाति-पायोगव स्त्रीसे उसकी उत्पत्ति थी। की है। मछलियाँ मारनेका इनका पेशा था: इस कारण वह बाह्य अथवा बाह्यतर और ये बहेलियेका काम भी करते थे। जातियों में न रही होगी । द्रौपदी जिस सरोवरमें दुर्योधनके छिप जानेका समा- समय सैरन्ध्री बनी थी, उस समय उसने चार पाण्डवोंको निपादोंसे मिलनेका कहा था- “सैरन्ध्री नामक स्त्रियाँ लोगों- वर्णन है। अन्तमें ब्राह्मण स्त्रीके शुद्रमे जो के घर कला-कौशलके काम करके अपनी सन्तान हुई, वह अत्यन्त निन्द्य चाण्डाल गुज़र किया करती हैं।" यह भी वर्णन है है। इनको जल्लादका काम मिला। जिन कि ये स्त्रियाँ भुजिण्या है अर्थात् मालिक- अपराधियोको प्राणान्त दण्ड दिया जाता की इन पर एक प्रकारको विशेष सत्ता था उनका सिर ये काट लेते थे । अनुलोम है। इस कारण, सैरन्ध्रीने पहले ही कह जातियोंमें अम्बष्ट, पारशव और उग्र | दिया था कि मेरे पति गन्धर्व हैं। अर्थात् जातियाँ कही गई हैं। उनके व्यवसायका दासीको अपेक्षा सैरन्ध्रीकी स्थिति कुछ वर्णन (अनु०प०अ०४८में)नहीं है । तथापि अच्छी होगी। इन सैरन्ध्रोके कई भेद बत- द्विजोंकी सेवा करना उनका काम था। लाये गये हैं: जैसे-मागध-सैरन्ध्र, बहे- यह कहा गया है कि सङ्कर जातियों में भी लियेका काम करनेवाले, वैदेह-सैरन्ध्र,और सजातीय स्त्री-पुरुषमं उन्हींकी जातिकी शराब बनानेवाले आदि । सैरन्ध्र स्त्रीसे सन्तान होती है। इस नियमका उल्लङ्घन चाण्डालके जो सन्तान होती थी, उसका होकर उत्तम पुरुष और अधम स्त्री अथवा नाम श्वपाक कहा है। ये जातियाँ बहुधा अधम पुरुष और उत्तम स्त्रीके समागमसे गाँवके बाहर रहनेवाली, बहुतही ओछा • न्यूनाधिक प्रमाणमें निन्ध सन्तति होती पेशा करनेवाली और मूलके नीच निवा- है। यहाँ एक बात यह कही गई है कि सियों से होगी। इन जातियोंके लोग खासकर प्रतिलोम सन्तति बढ़ते बढ़ते और कुत्ते और गदहे आदिका निषिद्ध मांस एककी अपेक्षा दूसरी हीन-ऐसी पन्द्रह खाकर निर्वाह करते होंगे। प्रायोगव स्त्री प्रकारकी बाह्यान्तर' सन्तति होती है। और चाण्डालसे पुक्कस जाति उपजती है। उनमेसे कुछके नाम ये हैं । ब्राह्मण, क्षत्रिय इस जातिवाले हाथी-घोड़ेका मांस खाते, और वैश्यका क्रिया-लोप हो जाय तो कफ़न पहनत और खप्परमें खाते हैं । उन्हें दस्यु मानते हैं : ऐसे दस्युसे आया- 'इनका ऐसा ही वर्णन है । श्वपाकोंका गव स्त्रीमें जो सन्तान होती है. उसका पेशा मरघटमें मुर्दे रखनेका था । ये