(३) शिक्षापद्धति-पृ० २०७-२१७ ब्राह्मणोंने शिक्षाका काम अपने जिम्मे लिया २०७, गुरुके घरमें शिक्षा २०८- २१०, बड़े बड़े विश्वविद्यालय नहीं थे २११, शिक्षाका क्रम २१२-२१२, घर पर रखे जानेवाले शिक्षक प्राचार्य २१२, व्यवसायकी शिक्षा २१३, स्त्रीशिक्षा २१५-२१७ सातवाँ प्रकरण-विवाह-संस्था-पृ०२१८-२४५ अनियंत्रित स्थितिमें विवाह मर्यादाकी स्थापना २१८, नियोग २१८-२१६, पाति- अस्यकी उदात्त कल्पना २१६-२२०, पुर्नविवाहकी रोक २२०-२२१, प्रौढ़-विवाह २२२- २२३, मनुस्मृतिके विरोधी-वचन २२३-२२४, पति-पत्नि समागम २२५-२२६, कन्यात्व- दूषण २२६-२२७, स्त्रियोंके लिए विवाहकी आवश्यकता २२७, अनेक पत्नीधिवाह २२७-२२०, श्रीकृष्णकी अनेक स्त्रियाँ २२८, पाण्डवोंकी अन्य स्त्रियाँ २२८-२२९, एक स्त्रीका अनेक पति करना २२६-२३०, विवाहके भेद २३०, ब्राह्मण, क्षात्र और गन्धर्व २३१-२३२, मासुर २३२-२३३, राक्षस २३३-२३४, ब्राह्ममें परिवर्तन २३४, सप्तपदी, पाणिग्रहण और होम २३४-२३५, विवाहके अन्य बन्धन २३५, शूद्रात्री २३५-२३६, सिंहावलोकन २३६-२३७, पतिपत्नीका सम्बन्ध २३७-२३- पतिव्रता धर्म २३८-२३६, पतिपत्नीका अभेद सम्बन्ध २३६, द्रौपदीके वस्त्रहरणके समय भीष्मका चुप रहना २३६-२४०, पातिव्रत्यके सम्बन्धमे ग्रीक लोगोंके प्रतिकूल मत २४१-२४२, सतीकी प्रथा २४२, परदेका रवाज २४३-२४४, दूसरे बन्धन प्रवर २४४, मामाकी बेटीके साथ विवाह २४४, परिवेदन २४५ पाठवाँ प्रकरण-सामाजिक परिस्थिति-पृ० २४६-२६३ (१) अन्न-पृ. २४६-२६२ प्राचीन कालमें मांसान-भक्षण २४६, मांसानत्याग २४७, नकुलका पाख्यान २४८, गोहत्याका पातक २४६, नहुष-संवाद २५१, गोहत्या निषेध जैनोंसे पहलेका, श्रीकृष्ण- की भक्तिके कारण है २५१, यश और मृगयाकी हिंसा २५१, वर्जाधर्ज मांस २५२, मांस- भक्षणकी निन्दा २५३, मद्यपान निषेध २५५, विश्वामित्र-चाण्डाल संवाद २५६, मद्यपान- त्याग २५७, सारस्वतोंका मतस्य-भक्षण, २५८, धान्य चावल, गेहूँ आदि २५८, गोरसका महत्त्व २५६, भोजनके समय मौन २६०, भोजनके पदार्थ २६०, भोजनके नियम २६१ (२) वस्त्र-भूषण-पृ० २६२-२७७ पुरुषोंका पहनावा २६३, अन्तरीय, उत्तरीय, उष्णीष २६३-२६४, सिलाईके कामका प्रभाव २६४, स्त्रियोंका पहनावा २६४, स्त्रियोंकी वेणी २६६-२६८, पुरुषोंकी पगड़ी २६८, सूती, रेशमी और ऊनी वस्त्र २६६, बल्कल २६६, पादत्राण २७१, पुरुषोंकी शिखा २७१, पोशाकको सादगी २७३, अलंकार २७४, आसन २७६ (१) रीति-रवाज-पृ० २७७-२९३ । धेशस्त्रियाँ २७७-२७८, धृत २७८, बिलकुल शुद्ध आवरण २७६, स्पष्टोक्ति २.६, बड़ोका पादर २७६, भीष्मकी पितृभक्ति २८०, आविर्भाव २०१, उद्योगशीलता २६२,
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