२६.
- महाभारतमीमांसा
- लोग क्षत्रिय-स्त्रियोंको ग्रहण करते थे; इस क्षत्रिय अध्ययन करते हैं और अपने आप कारण क्षत्रियोत्पत्र ब्राह्मण सहज ही ' यक्ष कर लेते हैं । ब्राह्मण-अन्धों और उप- क्षत्रिय-वृत्तिकी अोर झुक जाते थे। ब्राह्मण निषदोंके अनेक वर्णनोंसे स्पष्ट देख पड़ता आपत्कालमें वैश्य-धर्मका अवलम्ब करे है कि पुराने ज़मानेमें ब्राह्मणों और क्षत्रियों- या नहीं ? यह प्रश्न युधिष्टिरने भीष्मसे को वेदाध्ययनमें बहुत कुछ बराबरी थी। किया है (शान्ति प० अ० ७- )। भीष्मने किन्तु धोरे धीरे वेद-विद्या जैसे जैसे इसका यह उत्तर दिया है कि ऐसे समय कठिन होती गई और यज्ञ-याग ज्यों ज्यों पर ब्राह्मणको कृषि और गोरक्षा से क्लिष्ट होते गये, वैसे ही वैसे ये काम विशेष जीविका कर लेनी चाहिए। लेकिन एक 'जातिके हो गये । क्षत्रियों में इन कामोंकी शर्त है। ब्राह्मण यदि क्षात्र-धर्म वर्तनेमें प्रवृत्ति घट गई । महाभारत-कालमें असमर्थ हो तभी इस तरहसे गुज़र करे। क्षत्रिय का वेद-प्रावीण्य कम हो गया खरीद-फरोख्त कर लेनेकी भी श्राशा थी, ' होगा। कयोंकि युधिष्ठिर के वेदमें प्रवीण परन्तु शहद, नमक, पशु, मांस और पका- और यज्ञ श्रादि कर्ममें कुशल होनेकी प्रशंसा पकाया भोजन पंचनेको मनाही थी। करना तो एक आर रहा, उलटे महाभा- अर्थात् , महाभारतकालमें ब्राह्मण लोग रतमें दो एक स्थानों पर ये काम जाननेके न सिर्फ सिपहगिरी करते थे बल्कि खेनी, कारण उसको निन्दा की गई है। महा- मोरक्षा और दुकानदागे आदि, अाजकल-, भारत-कालमें सामान्य रूपसे सभी क्षत्रिय की तरह, तब भी किया करते थे। किन्तु यदि वेदमें प्रवीण होते, तो इस तरह बहुधा ये काम वे आपत्तिके समय ही निन्दा करनेको बात किसीके मनमें न करते थे। उपजती । अर्थात् सौतिके समय वेद-विद्या क्षत्रियोंका काम। । पढ़ने की रुचि क्षत्रियों में घट गई थी। क्षत्रियोंका विशेष व्यवसाय था-प्रजा- अब क्षत्रियोंके व्यवसायका विचार पालन और युद्ध । युद्धमै शूरता प्रकट करना है। उनको अध्ययन, यजन और • करना क्षत्रियका ही काम था । इस काम- दानका अधिकार था। वेदाध्ययन करके का व बहुत दिनास, बहुत अच्छी तरह अपने घर अग्नि स्थापित करके होम-हवन से करते आ रहे थे । क्षत्रियोंकी 'यद्ध करने और यथा-शक्ति दान देनेका उनको चाप्यपलायनं' वृति साहजिक थी । अधिकार था। किन्तु यह उनका व्यवसाय हथियारीका पेशा इन्होंने चलाया था। न था । ब्राह्मणों की तरह, इन कामोंके किन्तु इस पेशेको कुछ ब्राह्मण भी करते द्वारा, वे अपनी गुज़र न कर सकते थे। थे । इसके सिवा शास्त्रको श्राशा भी थी यह मान लेनेमें कोई हानि नहीं कि क्षत्रिय कि विशेष अापत्तिके समय सभी जातिके खोग पुराने ज़मानेमें खासा वेदाध्ययन लोग शस्त्र ग्रहण कर । फिर युद्ध के काम- करते थे और होम-हवन भी स्वयं समझ के लिए जितने मनुष्य तैयार हों, उनकी बूझकर कर लेते थे। महाभारतमें वेद- आवश्यकता थी ही । यह पेशा ही ऐसा पारङ्गत और यजनशील क्षत्रिय राजाओंके है कि उसमें शूरोको ही गुज़र है । इस अनेक वर्णन है । पीछे जिस कैकेय कारण, जिसमें शूरता हो उसे यह पेशा भाल्यानका उल्लेख किया जा चुका है, कर लेनेकी स्वाधीनता होनी चाहिये। उसमें स्पष्ट कहा गया है कि मेरे गज्यमें महाभारतके समय अधिकांश क्षत्रिय यही