ॐ वर्ण-व्यवस्था। # और तमसे लगाई गई है। इसका भी जगह है। परन्तु इन दोनों बातोंका थोड़ा- तात्पर्य ऊपरवाली ऐतिहासिक उपपत्ति बहुत स्वरूप महाभारत-कालमें भी स्थिर से मिलता-जुलता है। सत्त्वका रङ्ग सफेद, रहा होगा। बिना इसके ब्राह्मणोके रजका लाल और तमका काला होता | विषयमें पूज्य बुद्धि स्थिर न रही होती। है। रज और तमके मेलका रङ्ग पीला खैर, इस बातको अलग रखकर यह मान्य होता है । सत्त्व-रज-तमके काल्पनिक करना चाहिए कि इन वर्गों में परस्पर रङ्गोंके आधार पर वर्णौकी कल्पना की गई | बेटी-व्यवहार करनेका बन्धन महाभारत- है, फिर भी उसमें स्वभाव-भेदकी असल के समय मौजूद था। ब्राह्मण, क्षत्रिय, बात छूटने नहीं पाई । ब्राह्मण सत्त्वशील | वैश्य और शुद्रतक साधारण रीति पर, होते हैं, शुद्र तमोयुक्त होते हैं और क्षत्रिय | अपनी ही जातिमें विवाह करते थे। मेगा- रजोयुक्त रहते हैं, इन्यादि वर्णनोंमें वर्णो-स्थिनीज़ने इस समयका जो वर्णन किया के स्वभाव-भेदका अस्तित्व मान्य किया है, उससे भी यही बात मालूम होती है। गया है। इसमें दो वंशोंकी विभिन्न नीति- वह कहता है-“ये जातियाँ अापसमें ही मत्तासे ही उनके उच्च-नीच भाव निश्चित । विवाह करती हैं । सिर्फ ब्राह्मणोंको उच्च करनेका प्रयत्न किया गया है। इसमें यह | वर्ष होनेके कारण, सब जातिकी स्त्रियाँ बात मान्य की गई देख पड़ती है कि | ग्रहण करनेकी म्वतन्त्रता है।" सम्भव है, असलमें एक ही जाति थी: आगे चलकर उसकी वह जानकारी अपूर्ण हो, और भिन्न भिन्न म्वभावोंके अनुसार वंश क्षत्रिय तथा वैश्य भी अपनेसे नीची अर्थात् वर्णका भेद पड़ गया। वर्णके | जातियोंको स्त्रियाँ ग्रहण करते रहे हो । लिये गुण स्वाभाविक है, यह सिद्धान्त परन्तु समस्त प्रमाणों पर विचार करनेसे विशेषतः ब्राह्मण और शद वोक लिये स्पट होता है कि महाभारतके समय ही उपयुक्त होगा। एक सत्त्वप्रधान था। ब्राह्मण लोग ऐसे अनुलोम विवाह तो दूसरा तमःप्रधान । युधिष्ठिरके उत्तर- प्रत्यक्ष किया करते थे और अनु० पर्वके में ब्राह्मणमें जो सत्य और तप आदि गुण ४४ वें अध्यायमें स्पष्ट वचन भी है। पूर्व कहे गये हैं, वे ही यहाँ भी कह गये हैं। समयमें ब्राह्मणकी तीनों वर्गीकी स्त्रियों- से उत्पन्न सन्तान ब्राह्मण मानी जाती विवाह-बन्धन । थी: किन्तु आगे फिर यह नियम सङ्कचित चातुर्वर्ण्यकी उत्पत्ति कैसी ही क्यों | होता गया और महाभारतके समय न हो, इसमें सन्देह नहीं कि महामारत. ब्राह्मणी तथा क्षत्रिया स्त्रीसे उत्पन्न के पूर्वकालसे हिन्दुस्तानमें चातुर्वर्ण्य- | सन्तान ब्राह्मण मानी जाती थी। विलोम व्यवस्था थी। और यह भी मान्य करना और अनुलोम सम्बन्धोंके कारण कुछ होगा कि इस व्यवस्थाका मूल बीज जो तो धर्मबाह्य और कुछ शुद्धाचारयुक्त रङ्गका फ़र्क या सभ्यताका भेद है, वह जातियाँ बन गई थीं। उनमें अपनी अपनी महाभारतकालीन स्थितिमें न था। क्योंकि जातिमें ही विवाह होते थे। विश्वामित्र- ऊपर शान्ति पर्वका जो अवतरण दिया के उदाहरणसे देख पड़ता है कि प्राचीन गया है, उसीमें यह बात मानी गई है कि कालमें नीच वर्णस उच्च वर्गों में जानेका सब वणोंमें सभी रङ्ग पाये जाते हैं और रवाज था । किन्तु महाभारतके समय काम-क्रोध आदिकी प्रबलता भी सब यह बात न रही होगी: क्योंकि विश्वामित्र २४
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