- महाभारतमीमांसा *
कया। दर्जा हलका क्यों माना जाय ? महज ही उच्च स्वभावमं बतलाई, किन्तु यह वाद यह आक्षेप होता है कि परमेश्वरने सभी यहीं समाप्त नहीं हो गया। नहुषने इस लोगोंको एकसी बुद्धि दी है : फिर यह पर फिर प्रश्न किया। बात भी नहीं है कि सभी ब्राह्मण बहुत चातुर्वण्य प्रमाणं च सत्यं चेद् ब्रह्म बढ़िया नीतिवाले और शुद्धाचरणी होते चैवहि । शुद्रेष्वपि च सत्यं स्याद् दानम- हो; आखिर शुद्रोंमें भी तो बुद्धिमान, ! क्रोध एव च ॥ सदाचरणी और नीतिमान् लोग हैं। अर्थात् चातुर्वर्ण्य-व्यवस्थाको प्रमाण किसी एक ही जातिके लोगोंने बुद्धि मानना चाहिये और सत्य ही यदि ब्रह्म अथवा सदाचारका कुछ ठेका नहीं ले अथवा ब्राह्मण्य हो तो शृद्रमें भी तो लिया है। ब्राह्मणोंमें भी मूर्ख और दुरा- सत्य, दान, शान्ति आदि गुण देखे जाते थारी लोग हैं। तब वर्णभेद वंश पर नहीं, है। (इसकी क्या गति है ?) युधिष्ठिरने सिर्फ स्वभावके ऊपर अवलम्बित रहना इसका यह उत्तर दिया-"यदि शूदमें ये चाहिए । इस तरहके श्राक्षेप सदा होते लक्षण हो और ब्राह्मणमें न हो तो न तो वह रहते हैं और ये बौद्धोके समय भी होते शद्र, शद्र है और न वह ब्राह्मण, ब्राह्मण रहे होंगे । महाभारतमें इस विषयसे । है। जिसमें यह वृत्त यानी श्राचरण देख सम्बन्ध रखनेवाला एक महत्त्वपूर्ण पड़े, उसे नो ब्राह्मण समझना चाहिये आख्यान है। वह यहाँ समूचा देने लायक और जहाँ न देख पड़े उसे शद्र समझिये।" है। नहुष राजाको ब्राह्मणोंके शाप देनका इस पर नहुषने पूछा कि-"यदि वृत्त पर वर्णन पहले हो चुका है । नहुषके मन पर ही तुम ब्राह्मणत्वका फैसला करते हो ब्राह्मणोंके दबदबेकी ख़ासी धाक जम गई तो फिर जातिका भगड़ा नाहक है, जब- होगी और सदा यह प्रश्न होता रहा तक कि कृति न हो।" युधिष्टिरने इसका होगा कि 'हमारे आगे ब्राह्मण श्रेष्ठ कयों अजव उत्तर दिया है (व० अ० १८०)। हैं? वन पर्वमें युधिष्टिरका और सर्प-जातिरत्र महासर्प मनुष्यत्वे महामते । योनिमें गिरे हुए नहुषका सम्वाद है। सङ्करात्सर्व-वर्णानां दुष्पगन्येति मे मतिः ॥ यह सम्बाद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । नहुष सर्वे सर्वास्वपत्यानि जनयन्ति सदा नराः। कहता है-“हे धर्म, मेरे प्रश्नका समुचित वाइथुनमथो जन्म मरणं च समं नृणाम् ॥ उत्तर दो तो मैं तुम्हारे भाईको छोड़ दूं।" : इदमा प्रमाणं च ये यजामह इत्यपि । उस समय नहुषने भीमसेनको फंसारक्खा तस्माच्छीलं प्रधानेष्टं विदुर्ये तत्वदर्शिनः ॥ था। युधिष्टिरने कहा- "हे सर्प, पूछो; मैं कृतकृत्याः पुनर्वर्णा यदि वृत्तं न विद्यते । अपनी समझके अनुसार उत्तर दूंगा।" सङ्करस्तत्र राजेन्द्र बलवान् प्रसमीक्षितः ॥ नहुषने पूछा-"ब्राह्मण किसे कहना युधिष्ठिरने कहा-“हे सर्प, मुख्य चाहिये ?" इसका सीधा उत्तर युधिष्ठिर- जाति तो आजकल मनुष्यत्व है। क्योंकि ने यह नहीं दिया कि ब्राह्मण स्त्री-पुरुष- सब वौँका सङ्कर हो जानेसे भिन्न भिन्न से जो उत्पन्न हो, उसे ब्राह्मण समझो। जातियोंकी परीक्षा ही नहीं की जा सकती। उन्होंने विलक्षण उत्तर दिया है। उन्होंने मैं तो यही समझता हूँ। सब वों के कहा कि-"ब्राह्मण तो वही है जिसमें लोग सभी जातियों में सन्तान उत्पन्न शान्ति, दया, दान, सत्य, तप और धर्म करते हैं, इस कारण वाणी और जम्म- हो" युधिष्ठिरने ब्राह्मणकी पहचान.उसके ! मरण सभीका एकसा है। इसके सिवा