पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१९९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

• वर्ण-व्यवस्था ब्राह्मणसे क्यों नहीं करवा सकते ? नहुषने ऊपरकी तीनों आर्यवंशी जातियोंका नाम अपनी पालकीमें कन्धा लगानेकी सब त्रैवर्णिक हो गया। फिर यहीसे जातिके ऋषियोंको आज्ञा दी और जब ऋषि- कड़े नियमोके स्वरूप उत्पन्न होने लगे। लोग पालकी उठाकर जल्दी जल्दी न हिन्दुस्थानमें जब आर्य लोग आये तब चल सके, तब वह उनसे ज़ोर ज़ोरसे उनमें जातिबन्धनका थोडासा बीज था: 'सर्प सर्प' अर्थात् "चलो चलो” कहने और ब्राह्मण तथा क्षत्रिय, ये दो जातियाँ लगा । उस समय अगस्ति ऋषिन अथवा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यके व्यवसाय- शाप दिया कि 'तू सर्प ही हो जा' और वह भेदसे उपजी हुई तोन जातियाँ थीं। सर्प बनकर नीचे गिर पड़ा (भा० वन० इसी प्रकारके भेद ईरानी लोगोंमें अ० १८१) । इस कथाका यही तात्पर्य है भी थे, रोमन लोगोंमें भी थे और जर्मन कि जो लोग बौद्धिक व्यवसाय करेंगे उन लोगोंमें भी थे। अब बड़े महत्वका प्रश्न पर शारीरिक मेहनत करनेकी सख्ती न यह है कि उन देशोंमें, जाति-भेदको हो सकेगी। विवाहके प्रतिबन्धका सहारा मिलकर, वैश्य और शूद्र। अभेद्य बन्धनोंवाली जातियोंका वृक्ष क्यों नहीं उत्पन्न हो गया, जैसा कि हिन्दुस्थान- इस प्रकार ऋग्वेद के समयमै जब में हुआ है। आर्य लोगोंकी सभी शाखाओं- प्राचीन आर्य हिन्दुस्थानमें प्राय तब में जाति-पाँतिका थोड़ा बहुत बन्धन था। उन लोगोंमें दो जातियाँ उत्पन्न हो गई तब यह प्रकट ही है कि हिन्दुस्थानमें ही थी. परन्त अभीतक उनमें कडे बन्धन जाति-बन्धनकी जो प्रबलता बढ़ गई थी न बने थे। पञ्जाबमें श्राकर जब वेश्राबाद उसका कारण यहाँकी विशेष परिस्थिति हुए, तब सहज ही तीसरा वर्ग उत्पन्न है । वह परिस्थिति बाहरसे श्रानेवाले आर्य हुआ। देशमें खेतीका मुख्य राज़गार था, और हिन्दुस्थानमें रहनेवाले दास या और बहुत लोग यही पेशा करने लगे। अनार्य लोगों के बीचका महान अन्तर ही ये लोग एक ही जगह बस गये या है। श्रार्य गोरे थे और उनकी नाक सुन्दर इन्होंने उपनिवेश बनाये, इसलिये ये थी। इसके खिलाफ़ अनार्योकी रङ्गत काली लोग विश अथवा वैश्य अर्थात् सामान्य तथा नाक चपटी थी। उनकी बौद्धिक कहलाने लगे। ऋग्वेदमें विश् शब्द शक्तिमें भी बड़ा अन्तर था। दूसरी आर्य बराबर आता है जिससे प्रकट होता है शाखाएँ युरोप वगैरहमें जहाँ जहाँ गई,वहाँ कि पञ्जाबमें तीन जातियाँ उत्पन्न हो गईं कहीं इस प्रकारकी परिस्थिति न थी। थी। रामायणमें यह वर्णन है कि पहले उन देशोंके पुराने निवासी बहुत कुछ सिर्फ दो जातियाँ थीं: पीछेसे त्रेतायुगमें आर्यवंशके ही थे। वहाँके लोग अगर तीन हो गई। वह वर्णन यहाँ युक्तिसङ्गत आर्य वंशके न रहे हो तो भी रङ्ग और बुद्धि- जान पड़ता है। सारांश यह कि पञ्जाबमें मत्तामें नवीन आये हुए आर्योसे ज़्यादा जब सूर्यवंशी क्षत्रियोंकी बस्ती हुई, उस भिन्न न थे। जर्मनी में इस प्रकारकी भिन्नता समय ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये तीन बिलकुल ही नहीं देखी गई । रोममें अवश्य जातियाँ उत्पन्न हुई। इसके पश्चात् जल्दी कुछ थोड़ी सी भिन्नता थी, और कुछ ही वास अथवा मूलनिवासियोंका समा- दिनोंतक विवाहकी रोक टोक दोनों वेश:चौथी-शद्र, जातिमें होने लगा और जातियों में रही, पर यह शीघ्र ही दूर कर