पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१९८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७२
महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

पेशा छोड़कर ब्राह्मण हो जाते थे। आग्रह था कि क्षत्रियके बेटेने यदि महाभारतमें चन्द्रवंशका जो वर्णन है अपनी बौद्धिक शक्ति बढ़ा ली हो तो उससे यह यात स्पष्ट होती है। प्रतीप- | उसके ब्राह्मण होने में क्या बाधा है? अन्तमें का बड़ा लड़का देवापि क्षत्रियका व्यव- जीत विश्वामित्रकी ही हुई और वह साय छोड़कर बनमें तपश्चर्या करने स्वयं ब्राह्मण होगया । यही क्यों, फिरती लगा। उसने एक सूत्र भी बनाया है। वह अनेक ब्राह्मण-कुलोका प्रवर्तक भी मतिनारके वंशमें कण्व उत्पन्न हुआ था। हो गया । श्रादिपर्वमें वसिष्ठ-विश्वामित्र- वह ब्राह्मण हो गया और उसके सभी की जो कथा है, उससे यह कथा बहुत वंशज ब्राह्मण ही हुए । ये कराव लोग प्राचीन कालकी जान पड़ती है। यह ऋग्वेदके कोई सूक्तोंके कर्ता है। कथा सूर्यवंशी क्षत्रियोंके समयकी और अलबत्ता एक बात देख पड़ती है कि पञ्जाबकी है। वसिष्ठ ऋषिने विपाशा और उस समय ब्राह्मण लोग स्वतन्त्र व्यवसाव- शतद्रु नदियोंमें प्राण छोड़नेका यत्न किया, का आग्रह कर बैठे थे; अर्थात् उनका क्योंकि विश्वामित्रने उसके सौ बेटोको यह श्राग्रह था कि यज्ञ-याग आदिको मार डाला था । परन्तु उन नदियोंने क्रिया हम लोगोंको ही करनी चाहिये । वसिष्ठको डूबने नहीं दिया। इसी कारण वेद-विद्याके पढ़ने का कठिन काम ब्राह्मणों- उन नदियों के विपाशा और शतदु नाम ने जारी कर रखा था । यज्ञ यागादिके हुए (भा० आदि० अ० १७७)। इसी लिये आवश्यक भिन्न भिन्न प्रकारको जान- प्रकार एक वर्णन यह भी है कि विश्वा- कारी और मन्त्र-तन्त्र उन्होंने सुरक्षित मित्रने सूर्यवंशी कल्माषपाद राजाका रखे थे। ब्राह्मणोंका कर्म कठिन हो गया यज्ञ किया था। इस कथासे प्रकट होता था और उन्हें अपनी बौद्धिक शक्ति बढ़ानी है कि यह झगड़ा बहुत प्राचीन कालका पड़ी थी। यह बात प्रसिद्ध ही है कि है और यह पाबमें हुआ था। उस समय हर एक व्यवसायके लिए श्रानुवंशिक जो क्षत्रिय लोग ब्राह्मण कहलानेकी संस्कार बहुत उपयोगी होता है । अर्थात् महत्वाकांक्षा करते थे, वे ब्राह्मण हो ब्राह्मणोंके बालक ही स्मरण शक्तिसे वेद-। सकते थे: परन्तु यह प्रकट ही है कि विद्या ग्रहण करनेके योग्य होते थे। इस- ऐसे व्यक्ति बहुत ही थोड़े होंगे; और लिये ऐसा आग्रह कोई बड़ी बात नहीं ब्राह्मणोंका व्यवसाय वेद पढ़ना, एवं यक्ष- कि ब्राह्मणका बेटा ही ब्राह्मण हो । यह यागादि क्रिया कराना अत्यन्त कठिन तो अपरिहार्य श्राग्रह है। किन्तु श्रारम्भ- था: इस कारण वह अन्तमें ब्राह्मणोके में क्षत्रियोंने ब्राह्मणोंकी यह बात चलने ही हाथमें रहा । नदी । वसिष्ठ और विश्वामित्रके बादसे वसिष्ठ-विश्वामित्रके झगड़े में वर्णके स्पष्ट होता है कि क्षत्रियोंने इस विषयमें व्यवसाय-विषयक बन्धनके एकत्वकी खूब झगड़ा किया । इसके बाद भिन्न जिस तरह जाँच हो गई, उसी तरह भिन्न स्वरूपं रामायण और महाभारतमें नहुष-अगस्तिकी कथामें जातिके एक देख पड़ते हैं । परन्तु तात्पर्य सबका एक दूसरे तत्वकी परीक्षा हो गई। 'ब्राह्मणके ही है । ब्राह्मणोंका यह आग्रह था कि व्यवसायको और लोग क्यों न करें। इसी ब्राह्मणका बेटा ब्राह्मण हो और क्षत्रियका झगड़े के जोड़का एक और प्रश्न यह बेदी क्षत्रियः परन्तु विश्वामित्रका. यह होता है कि और जातिबालोंका पेशा