पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१९५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  1. वर्ण-व्यवस्था । *

है कि तत्त्वज्ञानका मार्ग कैसा था और कितना आक्रान्त किया जा चुका था। लोगोंके धार्मिक आचार-विचार कैसे थे वर्ण-व्यवस्था, आश्रम-व्यवस्था और नीनिकी क्या कल्पना थी। इन सब बानों पर इस ग्रन्थमें विचार किया और शिक्षा। जायगा । हिन्दुस्थानवालोंकी समाज- पिछले विवेचनसे, भारती-युद्धका स्थितिका मुख्य अङ्ग वर्ण-व्यवस्था है। समय सन् ईसवीसे ३००० वर्ष अतः इसी वर्ण-व्यवस्थाका शुरूमें विचार पूर्व निश्चित होता है और यह बात देव । किया जाना उचित है। पड़ती है कि यह युद्ध हिन्दुस्थानके आर्य वर्णका लक्षण । लोगोंमें, विशेषतःचन्द्रवंशी क्षत्रियोंमें, हुआ जिस प्रकारकी वर्णव्यवस्था हिन्दु था। इसीके लगभग भारत-ग्रन्थकी मूल । स्थानमें प्रमृत हो गई है, वैसी व्यवस्था, उत्पत्ति हुई और वह ग्रन्थ धीरे धीरे और किसी देश या लोगोंमें, प्राचीन बढ़ता गया: सन् ईसवीसे पूर्व २५० वर्षके कालमें अथवा अर्वाचीन कालमें, स्थापित आगे-पीछे सौतिने उसेही महाभारतका होनेकी बात इतिहास नहीं कहता । हिन्दु- रूप दिया । अर्थात, महाभारत-ग्रन्थम स्थानी वर्ण-व्यवस्था हमारे यहाँके समाज- हिन्दुस्थानकी उस परिस्थितिका पूरा का एक विलक्षण स्वरूप है। इस व्यवस्था- पुरा प्रतिबिम्ब है जो कि सन ईसवीसे के श्रमली स्वरूपको पाश्चात्य लोग नहीं पूर्व ३०००-३०० वर्षतक थी। ब्राह्मण- समझ सकते और उन्हें वड़ा अचरज होता कालसे लेकर यूनानियोंकी चढ़ाईतककी है कि यह व्यवस्था इस देशमें क्योंकर हिन्दुस्थानकी जानकारी यदि किसी पक उत्पन्न हो गई । हिन्दुस्थानकी वर्ण-व्यवस्था- ग्रन्थमें हो, तो वह महाभारतमें ही है। के सम्बन्धमें उन लोगोंने अनेक सिद्धान्त और कहीं वह मिल न सकेगी। हिन्दु- किये हैं, परन्तु वे सब ग़लत हैं। इन स्थानका और कोई प्राचीन इतिहास इस सिद्धान्तोंको स्थिर करने के लिये महाभारत समयका उपलब्ध नहीं है । कुछ बातोंका श्रादि ग्रन्थोंको जितनी जानकारी प्राव- पता ब्राह्मण और सूत्र आदि वैदिक ग्रन्थों-श्यक थी, उतनी पाश्चात्य लोगोंको न थी से चलता है। पर उनमें जो वर्णन है वह इस कारण और भी गड़बड़ हो गई है। . संक्षिप्त और अधूरा है। महाभारतकी तरह इसलिए उनके विचारों की ओर ध्यान न विस्तृत वर्णन उनमें न मिलेगा। इस दृष्टि- देकर अब हम यह देखेंगे कि महाभारत- से महाभारतका बहुत अधिक महत्व है। से, और महाभारतके पूर्वके वैदिक इस महत्वका उपयोग प्रस्तुत समालोचना- साहित्य तथा बादके मनुस्मृति आदि में कर लेनेकी बात पहले ही लिख दी साहित्यकी तुलनासे, क्या निष्पन्न होता गई है। इस समालोचनामें ऐसी ऐसी है। पहले देखना चाहिए कि वर्ण-व्यवस्था- अनेक बातोंका विवेचन करना है कि का अर्थ क्या है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य प्राचीन कालमें हिन्दुस्थानके लोगोंकी और शुद्र यही वर्णका सरसरीतौर परमर्थ सामाजिक स्थिति कैसी थी, यहाँ रीति- देख पड़ता है। परन्तु अाजकल इतनेसे रवाज कैसे और क्याथे और ज्ञानकी कितनी ही काम नहीं चलता। हिन्दुस्थानमें अब प्रगति हो गई थी। इसमें यह भी देखना अनेक जातियाँ हैं और महाभारतके समय