पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१७५

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  • इतिहाम किन लोगोंका है। #

है। फिर भी चन्द्र और सूर्यका स्पष्ट नाम रहा होगा । श्रीकृष्ण, अर्जुन, वेदव्यास नहीं है । इस कारण जरासा सन्देह रह ही और द्रौपदी आदिके वर्णसे ऐसा ही जान जाता है कि महाभारतके समयमें भी इन पड़ता है। मल्ल-विद्याका उन्हें अभिमान नामोंका प्रचार हुआ था कि नहीं। आगे था। श्रीकृष्ण, बलराम, दुर्योधन, भीम पुराणा-कालमें ये नाम प्रसिद्ध हो गये। और जरासन्ध आदिके वर्णनसे ज्ञात होता ऋग्वेद-कालसे लेकर महाभारतकाल- है कि इन्हें मल्लविद्याका खासा शौक तक सिर्फ यही बात पाई जाती है, कि था । इनकी भाषामें भी कुछ भिन्नता हिन्दुस्तानमें दो वंशोंके आर्य आये थे। थी और हम पहले दिखला ही चुके हैं पहले भरत या सूर्यवंशी क्षत्रिय श्राये। कि यह भिन्नता प्राजकलकी संस्कृ- फिर पिछेसे यदु, पूर वगैरह वंशोके तोत्पन्न मध्यदेशीय हिन्दी भाषामें भी क्षत्रिय आ गये। ब्राह्मण-कालमें इस दूसरे मौजूद है। उनके शिरके परिमाणमें भी वंशवाले क्षत्रियोंका उत्कर्ष देख पड़ता है। कुछ अन्तर रहा होगा । इसका खुलासा वही भारती युद्ध के समय रहा होगा। आगे किया जायगा । अनुमानसे मालूम श्रीकृष्णके कथनसे मालूम पड़ता है कि पड़ता है कि इनमें चान्द्र वर्षसे चलने- भारतमें ययातिके वंशज भोज-कुलकी वाले कुछ लोग थे। आपसके झगड़ेके प्रबलता अधिक थी। ये सारे चन्द्रवंशी कारण इन लोगों में भारतीय युद्ध हुआ और घराने गङ्गा, यमुना और सरस्वती नदीके दोनों ओर मुख्यतः चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे। किनारे आबाद थे। पहले आये हुए. पाण्डव । आर्य पजाब और अयोध्या-मिथिला प्रान्त-, अब इस बातका विचार करना चाहिए में बसे हुए थे और चन्द्रवंशी आर्य : कि पागडव कौन थे । कौरवोका राजा था उन्हींके बीच में घुसे हुए थे। इन चन्द्रवंशी प्रतीप: उसका पुत्र हुश्रा शन्तनु । शन्तनु- आयौंके मुख्य मुख्य कुल येथेः-(2) कुरु- के दो पुत्र भीष्म और विचित्रवीर्य हुए । क्षेत्रमें कौरव (२) गङ्गाके किनारे यद भीमने अपना राज्यका हक छोड दिया. और उसके दक्षिणमें पाञ्चाल, (३) मथुरा: . तब विचित्रवीर्य गद्दी पर बैठा । विचित्र- में और यमुना किनारे यदु भार शरसेनी : वीर्य के धृतराष्ट्र और पाण्डु हुए । धृतराष्ट्र भोज, (४) दक्षिणमें यमुना किनारे थे अन्धे, इस कारण पागडु राजा हुश्रा। प्रयागतक चेदि और (५) गङ्गाके दक्षिण- तबियत खराब हो जाने पर पाण्डु वनमें में मगध । इनके सिवा (६) अवन्ति चला गया । तव धृतराटके बेटे दुर्योधनको और विदर्भमें भी भोज-कुल थे। ये सभी राज्य मिला । जब पाण्डु वनमें गया तब चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे। भोजोंके दबदबेके । उसके सन्तान न थी। इस कारण कुन्ती मारे यादव लोग श्रीकृष्णके साथ मध्य-! और माद्रीने देवताओंको प्रसन्न करके देश छोड़कर चले गये: और (७) सौराष्ट्र उनसे पाँच बेटे उत्पन्न करा लिये। यही यानी काठियावाड़में जाकर द्वारकामें बस पाण्डव कहलाये । ये पागडव हिमालयमें गये। ये सब चन्द्रवंशी क्षत्रिय आर्य थे। ही सयाने हुए और पाण्डुके मर जाने पर इनका धर्म वैदिक ही था, अर्थात् ये इन्द्र हिमालयके ब्राह्मणोंने उन्हें हस्तिनापुग्में और अग्निकी उपसना करते थे। फिर भी धृतराष्ट्रकी निगरानी में कर दिया । यहाँ इनमें, और पहले पार्योंमें, कुछ थोडासा उनसे दुर्योधन आदिका विवाद शुरू हुआ। फर्क था। इन क्षत्रियोंका वर्ण साँवला उस समय भी यह कल्पना रही होगी कि