पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१७३

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  • इतिहास किन लोगोंका है । *

१४७ लोग अनार्य-मिश्रित होंगे । किन्तु यह वचन है। यहाँ उसका उल्लेख करना कहाँ सिद्ध होता है कि क्रिवि और तुवंश ठीक होगा:- अनार्य थे? ब्राह्मण-प्रन्थों में कुरु-पाश्चालो- यदोस्तु यादवा जातास्तुर्वसोर्यवनाः की सदा बड़ाई मिलती है। कई स्थानों स्मृताः । द्रोः सुतास्तु वै भोजा अनोस्तु पर पाञ्चालोका स्वतन्त्र नाम आता है। म्लेच्छजातयः। ब्राह्मण-प्रन्थोके वर्णनसे प्रकट होता है कि यदुसे यादव, तुर्वसुसे यवन, दुघुसे कुरुओकी तरह ये लोग भी यज्ञकर्ता, भोज और अनुसे म्लेच्छ उत्पन्न हुए। विद्वान् और तत्त्वज्ञानके अभिमानी थे। इस श्लोकमें वर्णित तुर्वसु, दुा और अनु तात्पर्य यह कि पाञ्चालोकी सत्कीर्ति कुछ की सन्तति बिलकुल भिन्न है। इससे कम दर्जेकी न थी। ये पाञ्चाल गङ्गा और सिद्ध होता है कि महाभारत कालमें यमुनाके बीच हस्तिनापुरसे दक्षिण तरफ इनको सन्तानके विषयमें बिलकुल ही थे। महाभारतसे ज्ञात होता है कि गङ्गाके निराली समझ थी। और इससे यह भी उत्तरमें भी इनका प्राधा राज्य था। मालम पडता है कि सौतिने न तो हरि- अनु और दृह्य । वंशको लिखा ही है और न उसकी जाँच अब अनु और दहा ये दो शाखाएँ | की है। प्रतीत होता है कि उसकी सन्तति- रह गई सो इनका भी हम विचार करते सम्बन्धी जानकारी बहुत करके महा- है। ऋ० मं० ६ मूक्त ४६ में दा और भारतके समयमें लुप्त हो गई थी। प्राचीन पुरुका उल्लेख है। कदाचित् पुरुकी छोटी ग्रन्थोंका ऐतिहासिक प्रमाण देखते समय शाखामें अर्थात् पाञ्चालोंमें Bा मिल गये पूर्व पूर्वको अधिक प्रमाण मानना चाहिये। होगे । परन्तु हरिवंशके मतानुसार दुा. अर्थात, हरिवंशकी अपेक्षा महाभारत के वंशधर तो गान्धार हैं। शकुनि उसी अधिक प्रामाणिक है, महाभारतकी अपेक्षा वंशका था। वह भारती युद्ध में मौजूद वेदाङ्ग और वेदाङ्गोंकी अपेक्षा ब्राह्मण था। ऋग्वेदमें अनुकी बहुत प्रशंसा की अधिक प्रामाण्य है। ब्राह्मण-ग्रन्थोसे भी गई है। उसकी अग्निकी बहुत बड़ाई है। बढ़कर संहिता और उसमें भी ऋग्वेद- मालूम होता है. वह बड़ा भारी यज्ञ-कर्ता संहिताको इस काममें श्रेष्ठ मानना चाहिए। था । पञ्जाबका शिबि औशीनर इसी महाभारतकी यह बात मान लेने लायक वंशका है। पुराणकार कहते हैं कि इसी है कि दुह्य से भोजोकी उत्पत्ति हुई होगी: वंशमें भारत-युद्ध-कालीन शैब्य राजा क्योंकि इसके विपरीत हरिवंशका यह हुआ था। हरिवंशके बत्तीसवें अध्यायमें कथन कि-'उनसे गान्धार लोग उत्पन्न जो वर्णन है, वह कुछ भिन्न है। तुर्वशका हुए' पीछेका है। इसके सिवा गान्धार वंश नष्ट होकर पुरुके वंशमे मिल गया। देश पञ्जाबके उस तरफ है, इसलिये वहाँ उसके सम्मता नामकी एक बेटी थी: चन्द्रवंशी न गये होंगे। श्रीकृष्णने सभा उसीसे दुष्यन्त हुआ । इस प्रकार तुर्वश- पर्वमें जो यह कहा है कि ययानिके कुलमें का वंश कौरवोंमें मिल गया । दुपका भोज राजा उत्पन्न हुए, उससे भी यह वंश गान्धार कहा गया है। पर अनुके मेल खाता है। गान्धार बहुत करके पहले प्रचेता, और सुचेता आदि पुत्र और पौत्र आये हुए आर्योंके वंशज यानी सूर्यवंशी हुए। आगे फिर उसके वंशका वर्णन नहीं होंगे। हमारी कल्पनाको रामायणके है। इस कथनके विपरीत प्रादि पर्वमें एक वर्णनसे अनुकूलता मिलती है । रामायण-