महाभारतमीमांसा मण्डलोंमें त्रिन्सु एवं सुंदासके नामके लोग रामायणके आधार पर जानते हैं कि साथ बार बार पाता है। मालूम नहीं, ! भरद्वाजका मूर्यवंशसे सम्बन्ध है । ऊपर- आगे इन भरतोंका कया हुश्रा । बहुत करके की सब बातोका रामायणमें वर्णित कथा- ये कुरु लोगोंमें सम्मिलित हो गये होंगे। से मेल मिलाने पर साफ़ देखा जाता है भरत शब्दसे दौप्यन्ति भरतकी जो कल्पना कि ऋग्वेदके भरत ही सूर्यवंशी क्षत्रिय होती है, उससे यह गड़बड़ हुई है। सातवें हैं। उनके पुरोहित वसिष्ठ थे और दूसरे मण्डलमें वसिष्ठ ऋषिने जो सूक्त बनाये | ऋषि थे विश्वामित्र तथा भरद्वाज । हैं, उनके उल्लेखोंसे ज्ञात होता है कि भरत उनकी वंशावलीमें भी मनुके बाद भरत लोगोंके पुरोहित वसिष्ठ ऋषि थे और है और सुदास राजा भी है। इन सब उसके कुलमें उत्पन्न त्रिसु थे। यह वर्णन बातोंसे कहना पड़ता है कि ऊपर लिखा है कि भरतोंके सुदास राजाको लड़ाई में हुअा अनुमान निश्चित है। वसिष्ठने मदद की थी। तीसरे मण्डलमें ____ यह बात सिद्ध हो चुकी कि ऋग्वेदमें विश्वामित्रके सूक्त है । सूर्यवंशी क्षत्रियोंके जिन भग्नों का उल्लेख है, वे भरत महा- साथ विश्वामित्रका सम्बन्ध वसिष्ठके भारतके भरत नहीं हैं; वे तो हिन्दुस्थानमें समान ही है। विश्वामित्रके सूक्तोंमें पहलेपहल आये हुए आर्य हैं। वे सूर्यवंशी भरतोका बहुत उल्लेख है। एक सूक्तमें यह थे: उन्हींके कारण हिन्दुस्थान भारतवर्ष वर्णन है कि शतद्र और विपाशा नदियोंके कहलाया. और जितना देश उस समय सङ्गम पर एक बार भरत पाये, पर बाढ़के ज्ञात था, उसमें वे लोग बस गये । हिन्दु- मारे उन्हें रास्ता न मिला । तब विश्वा- स्थानी लोगोंको सामान्य रूपसे भारत- मित्रने भरतों के लिग इन नदियोंकी स्तुति जन संज्ञा प्राप्त हुई । ब्राह्मण-ग्रन्थों में भरत की। तब कहीं पानी घटा और भरत शब्दका साधारणतः क्षत्रिय वीर या उस पार हए। तीसरे सूक्तम कहा गया। साधारण ऋत्विज ब्राह्मण अर्थ होता था। है कि सुदास राजाको विश्वामित्रने भी निरुक्तकारने भारती शब्दका अर्थ किया मदद दी थी। इस सूक्तमको 'विश्वा- है-'भरत श्रादिन्यः तस्य इयं भाः मित्रस्य रक्षति ब्रह्मदं भारतं जनम्' यह भारती।' इससे भी भारतीका सम्बन्ध ऋचा बड़ी मनोरञ्जक है । 'विश्वामित्रका सूर्यवंशके साथ पाया जाता है । इन यह स्तोत्र भारत-जनोंकी रक्षा करता है' भारतोंका गज्य पञ्जाबसे लेकर ठेट पूर्वमें इस वाक्यमें 'भारत जन' शब्द महत्त्वका अयोध्या-मिथिलातक फैल गया था। है। सूर्यवंशके साथ जैसा विश्वामित्रका महाभारतके भारत और ऋग्वेदके सम्बन्ध है, वैसा ही भरद्वाजका भी है। भारत बिलकुल अलग अलग है। यह छठे मण्डलमें भरद्वाजके सूक्त हैं। उनमें बात हमें महाभारतके इस श्लोकसे मालूम भी भरतका, भारत लोगोंका, भरतोंकी पड़ती है:-"भारताद्भारती कीर्तिर्येनेदं अग्निका और दिवोदासका उल्लेख है। भारतं कुलम् । अप ये च पूर्वे वै भारता ऋग्वेदमें यह वर्णन है कि दिवोदास । इति विश्रुताः ॥ (१३१ श्रा० अ०७४) टीका- सुदासका पिता था । पाश्चान्य पण्डित कारने इस श्लोकके उत्तरार्धका अर्थ नहीं यह प्रश्न करते हैं कि भरतोंका वसिष्ठ और किया। इस उत्तरार्द्ध में यही बात कही विश्वामित्रके साथ सम्बन्ध तो आता है, गई है कि पुराने भारत प्रसिद्ध हैं, वे परभरद्वाजका क्या सम्बन्ध है ? किन्तु हम अपरे अर्थात् और हैं। हमारी समझमें
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महाभारतमीमांसा