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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

धन तथा शल्यका एक दिन, पूस सुदी इसका विवरण हम दूसरे स्थानमें देंगे। १ को, युद्ध जारी रहा । इसके बाद महा- यहाँ इतना ही कहना बस होगा कि भारतमें जो महत्वपूर्ण वचन हैं, वे भीष्म- '६५ वर्ष' शब्दका इस प्रसङ्गमें कुछ की मृत्युके बारे में हैं। उनकी मृत्यु माघ । भिन्न अर्थ लगाना पड़ता है । उनकी महीने में हुई । उनके उस ममयके वच- । मंख्या आधी यानी ३२ बग्स लेनी नोंका और मृत्यु-तिथिका विचार हम पड़ती है। इस तरहसे दो कठिनाइयाँ हैं। पीछे करेंगे। यहांतक हमने स्थूल मानसं ! इनका विचार न करने पर परम्पर विरोध युद्धको मिति सहित जन्त्री तैयार की है। उत्पन्न होता है और सभी वाक्योंकी अब हम पहले उन मुख्य कठिनाइयो- सङ्गति नहीं लगाई जा सकती। हमने का विचार करेंगे, जो महाभारतके वचनों मुख्यतः यह नियम बना लिया है कि द्वारा तथा उसमें बतलाये हुए नक्षत्रों जहाँ कोई वचन साधारण और स्वाभा- और ग्रहस्थिति ठाग ऐतिहासिक अनु- विक रीतिसे केवल नक्षत्र अथवा तिथि- मान निकालते समय, श्रा खड़ी होती है। के उल्लंग्य के सम्बन्धमे आया हो, उसे सरल हम पहले कह चुके हैं कि सौतिन मूल समझना चाहिये : अर्थात् वही उसका भारतको विस्तृत कर दिया है । यही । प्रधान अर्थ किया जाय और उसी अर्थके पहली अड़चन है, क्योंकि प्रश्न उठता है अनुरोधमे दृमरे वचनोंका अर्थ लगाना कि मूल भारतके वचन कौन हैं और · चाहिये, फिर चाहे वह मूलका वचन हो सौतिके द्वारा बढ़ाये हुए वचन कौनसे हैं ? : अथवा बादका हो । इसी तरहसे इस इस बातकी अधिक सम्भावना है कि यदि प्रश्नको हल करना चाहिये । तथापि हम मूल भारतका वचन हो तो उसमें बहुधा सभी वचनीको मूलके समझकर भी प्रत्यक्ष स्थितिका वर्णन दिया गया होगा। उनका विचार करेंगे और इसका भी दिग्द- पीछेके वचन काल्पनिक होनेके कारण 'र्शन करेंगे कि ऐसा करनेसे क्या परिणाम उनमे ऐतिहासिक अनुमान नहीं निकाले होता है और क्या अड़चन पड़ती है। जा सकते । यदि वैसा समय गणितसे अब पहली बात यह है कि ऊपर दिये निकाला जाय तो वह विश्वसनीय नहीं हुए श्रीकृषण, कर्ण और व्यामके वाक्योंसे हो सकता । दूसरी कठिनाई यह है कि कार्तिक बदी अमावस्याको युद्ध के पहले इसके सम्बन्धके बहुतेरे वचन-चाहे वे मूर्यग्रहणका होना हम निश्चित मानते सौतिके हो अथवा पहलेके हो-आपस- हैं। कार्तिक सुदी पौर्णिमाको चन्द्रग्रहण में विरोधी और कृट अर्थके हैं, जिससे हुआ होगा: परन्तु यह उतने निश्चयके साथ उनका कुछ भिन्न अर्थ लगाना पड़ता है। नहीं कह सकते, क्योंकि व्यासके वचनसे ऐसे कट श्लोक बहुधा संख्या पर ग्चे यह ध्वनि निकलती है कि दोनों ग्रहण गये हैं। हमारा अनुमान है कि वे सौति- एक ही दिन पड़े थे, किन्तु ऐसा होना के होंगे। ये संख्या-सम्बन्धी कृट श्लोक सम्भव नहीं है। कुछ लोगोंने यह कल्पना कैसे होते हैं, इसके बारेमें विगट पर्वका की है कि श्रीकृष्णने जयद्रथवधके समय उदाहरण देने योग्य है। उसमें कहा गया सूर्य पर आवरण डाल दिया था, जिससे है कि गोग्रहणके समयनक अर्जुनने ६५ उस दिन सूर्यग्रहण पड़ा होगा: परन्तु हम वर्षोंसे गांडीव धनुष धारण किया था। पहले ही देख चुके हैं कि उस दिन अमा- परन्तु ये पैमठ वर्ष ठीक नहीं बैठते होंगे। वम्या न थी, द्वादशी थी। उस दिन बहे