® भारतीय युद्धका समय * १२७ दिन दुर्योधनने अपनी सेना इकट्टी की नक्षत्र पर आ गया था। आगे, शल्यपर्व- थी। इस भाषणका और आगे भीष्मके में जब लड़ाई के अन्त में अर्थात अठारहवे भाषणका मेल मिलाने पर मालम होता दिन बलगम श्राये, तब उन्होंने कहा कि- है कि कार्तिक बदी अमावस्या १३ दिनोंमें पुष्येण संप्रयानोऽस्मि श्रवणे पुनरागतः। हुई होगी । भीष्म पर्व के प्रारम्भमें धृतराष्ट्र में पुष्य नक्षत्रमें गयाथा और श्रवणमें से मुलाकात कर, व्यासने उसके द्वारा वापस आया हूँ।" इसमे युद्ध के अठारहवे युद्ध बन्द करनेका प्रयत्न किया, परन्तु दिन श्रवण नक्षत्रका होना सिद्ध होता सफलता न हुई । इस समय व्यासने कुछ है। इससे अन्दाज होता है कि युद्धके बार- अनिष्टकारक ग्रहस्थितिका वर्णन किया है: । म्भमे श्रवणके पूर्व अठारहवाँ नक्षत्र रहना उसे हम आगे बतलावेंगे । परन्तु उन्होंने चाहिये: अर्थात् इस वाक्यसे मालूम आगे यह वर्णन किया है कि-"१४-१५-१६ होता है कि युद्धके प्रारम्भमें चन्द्रमा दिनोंका पखवाड़ा होते हुए मैंने सुना है, मृग नक्षत्रमें था । सम्भव है कि चन्द्रमा परन्तु १३ दिनोंका पाख इमी समय कुछ आगे पीछे भी रहा हो, यानी आर्द्रा पाया है। यह अश्रुतपूर्व योग है। इससे भी पुनर्वसु हो, परन्तु मघा नहीं हो सकता। अधिक विपरीत यात तो यह है कि पक तात्पर्य, इनमेंसे भी एक वाक्य मु-यसमझ- महीनेमें चन्द्र और मूर्यको ग्रहण लगे कर दूसरेका अर्थ बदलना चाहिये। हम और वह भी त्रयोदशीको लगे।" इसका इसी दूसरेवाक्यकोमुख्य मानकर चन्द्रमा- और श्रीकृष्ण के पहले दिये हुए वचनका का मृगमें युद्धारम्भमें होना मानते हैं। मेल मिलानेसे मालूम पड़ता है कि धृत- श्रीकृष्णने कहा था कि कार्तिकी अमावस्या- गष्ट्रसे भेंट करने के लिये व्यास मार्गशीर्ष में से युद्ध होने दो, परन्तु वैसा नहीं हुआ। किसी दिन गये होंगे । सम्भवतः वे शुक्ल- मालूम होता है कि मार्गशीर्ष मासमें मृग- पक्षमें ही गये होंगे। उसके पहलेका पक्ष नक्षत्र में युद्ध शुरू हुश्रा । अर्थात् उस दिन १३ दिनोंका था और अमावस्याको सूर्य- पौर्णिमा अथवा सुदी चतुर्दशी अथवा ग्रहण हुआ था। यह वर्णन है कि एक ही अधिकसे अधिक त्रयोदशी रही होगी। महीने में दो ग्रहण हुए थे, इससे मालूम भीष्मका युद्ध दस दिन हुश्रा: यानी भीष्म होता है कि चन्द्र ग्रहण कार्तिक पौर्णिमा मार्गशीर्ष बदी दशमी, नवमी अथवा को हुना होगा। यह ग्रहण उस समय अष्टमीको गिरे। इसके बाद द्रोणका लगा होगा, जब श्रीकृष्ण हस्तिनापुरमें युद्ध पाँच दिनोंतक हुश्रा अर्थात् द्रोण थे। यदि वहाँ उल्लेख नहीं किया गया तो मार्गशीर्ष बदी अमावस्याको अथवा दो यह कोई महत्वकी बात नहीं है। कदा- एक दिन आगे गिरे होंगे। परन्तु यहाँ चित् यहाँ यह भी कहना सम्भव है, कि निश्चयपूर्वक मालूम होता है कि द्रोण बर्दा दर्श पौर्णिमाको छोड़कर जो ग्रहण पड़ता प्रयोदशीको गिरे, क्योंकि यह वर्णन है है, वह अतिशयोक्ति है । इसके आगे युद्ध- कि जयद्रथ-वधके बाद रात्रिका भी युद्ध का प्रारम्भ हुआ : उस दिनके सम्बन्धमें जारी रहा, और एक प्रहर रात्रि बाकी यह वाक्य कहा गया है- रहने पर चन्द्रोदय हुश्रा । इससे मालूम मघाविषयगः सोमस्तदिनं प्रत्यपद्यत। होता है कि वह रात्रि द्वादशीकी रही इसका आपाततः यही अर्थ लिया जा होगी। फिर कर्णका दो दिनों तक अर्थात् सकता है कि उस दिन चन्द्रमा मघा मार्गशीर्ष बदी अमावस्यातक और दुर्यो-
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