पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१४५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • भारतीय युद्धका समय

- करके,हे भीष्म, यथोचित उत्तर दीजिये।" थीं। इस गड़बड़को मिटानेके लिये ज्यू- यदि भारतीय युद्धकालके समय भारत- लियस सीजरने चान्द्र मास और चान्द्र वर्षमें सौर वर्ष ही प्रचलित होता, तो वर्षका त्यागकर ३६५ दिनोंका सौर वर्ष द्रोणाचार्यके मनमें इस प्रकारकी शङ्का ही और न्यूनाधिक दिनोंके सौर मास शुरू उपस्थित न होती: क्योंकि यह बात गो- किये। यूनानियों में भी पहलेपहल चान्द्र प्रहणके समय हर एक बतला सकता था मास और चान्द्र वर्ष प्रचलित थे। एक कि अज्ञातवास पूरा हुआ या नहीं । ; महीना उनतीस दिनोंका तो दूसरा तील अर्थात् उस समय चान्द्र वर्ष भी प्रचलित दिनोंका मानकर वे लोग ३५४ दिनोंका था और पाण्डव उसीको मानते थे। अब चान्द्र वर्ष मानते थे।जब ऋतुचक्रमें गल- हम ऐतिहासिक दृष्टिसे इस बातका तियाँ होने लगी, तब सोलनने अधिकमासः विचार करेंगे कि ऐसी परिस्थिति हिन्दु- ! की पद्धति शुरू की। ईजिप्शियन लोगोंको स्थानमें कब थी। यह बात मालूम हुई थी कि सौर वर्षमें हिन्दुस्थानमें चान्द्र वर्ष कब प्रच- : ३६५ दिन होते हैं । वे ३० दिनोंका महीना मानकर ३६० दिनों में एक वर्ष पूरा करते लित था? थे और ५ दिन अधिक मिला देते थे। चान्द्र महीने पौर्णिमा तथा श्रमा- तिसपर भी : दिनकी भूल होने लगी। वस्याके कारण सहज ही ध्यानमें आते अतएव ३६५ ४४ = १४६० वर्षोंमें उनका हैं, और ऋतुओके फेरफारके कारमा सौर वर्ष सब ऋतुथोंमें घूमने लगा। पारसी वर्ष ध्यानमें श्राता है। यद्यपि बारह चान्द्र लोगोंमें भी ३६० दिनोंके बाद ५ दिन मास और एक सौर वर्षका स्थूल रूपसे अधिक जोड़नेकी पद्धति है। सारांश, मेल हो जाता है, तथापि यह मेल पूर्ण भिन्न भिन्न प्राचीन लोगोंके सामने चान्द्र रूपसे नहीं होता: और इसी कारण पूर्व वर्ष और सौर वर्षका मेल करने समय कालमें कालगणनामें कई बखेड़े उत्पन्न अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हुई थीं, और हुए थे। इन बखेड़ोंके कारण ही ज्यू और भिन्न भिन्न रीतियाँ उपयोगमें लाई गई अरब लोगोंने चान्द्र वर्षका स्वीकार करके थीं। हिन्दुस्थानमें भी इसी प्रकार कठि- सौर वर्षको छोड़ दिया । अाजकल नाइयाँ उपस्थित होनेके कारण प्राचीन मुसलमान लोग भी इसीको मानते हैं। कालमें भिन्न भिन्न रीतियाँ उपयोगमें उनका वर्ष सब ऋतुओं में चक्कर खाकर लाई गई थीं। आगे चलकर उनका मिल पूर्ष स्थान पर आ जाता है। रोमन लोग भिन्न परिणाम हुआ और अन्तमें वर्तमान प्रारम्भमें मार्चसे १० चान्द्र मास मानते पद्धतिका अवलम्बन किया गया। अब हम ये और कई दिन खाली छोड़कर, जब इसी विषयके इतिहासका विचार करेंगे। सूर्य सम्पात पर आ जाता था तब, फिर- मालूम होता है कि ऋग्वेदके समयमें से चान्द्र मास मानने लगते थे। कुछ स्थूल मानसे ३० दिनका महीना और १२ समयके बाद राजा न्यूमाने प्रत्येक दो महीनोका वर्ष मानते होंगे। ऋग्वेदमें वर्षों में तेईस दिन जोड़ देनेकी प्रथा जारी कई स्थानों में ऐसे चक्रका वर्णन है जिसमें कीरधर्मगह लोग इन अधिक दिनोंको बारह बारे ( डण्डे ) और ३६० कील किसी एक महीने में मिला देते थे। इस कथित हैं । बारह चान्द्र मास ३६० दिनमें कारण बहुत कठिनाइयाँ उत्पन्न होती ६ दिनमे कम होते हैं और ऋतुचक्र :