- भारतीय युद्धका समय है
- यह अनुमान निकलता है कि भारतीय यहाँ व्यासजीने दुर्योधनके ही माथे मढ़ युद्ध हिन्दुस्थानमें अत्यन्त प्राचीन कालमें दिया है। अतएव, यहाँ प्रश्न उपस्थित होता हुना होगा । अर्थात्, वह शतपथ ब्राह्मण- है कि पाण्डवोंने अपना करार पूरा किया के पूर्व हुआ होगा। आजकलके किसी अथवा नहीं ? यही प्रश्न जब भीष्म पिता- प्रन्थ अथवा कथामें पुरुषमेधकी प्रत्यक्ष महसे किया गया, तब उन्होंने जो उत्तर बात नहीं पाई जाती । तात्पर्य यह है कि दिया वह मनन करने योग्य है। उनका हमने सन् ईसवीसे पूर्व जो ३१०१ वर्षका जवाब है कि-"कालगतिसे सूर्य-चन्द्रका समय स्थिर है, वह निश्चयात्मक मालूम नाक्षत्रिक लङ्घन-कालके साथ भेद हो होता है। जाता है, इसलिये प्रत्येक पाँच वर्षों में दो महीने अधिक होते हैं। और इस हिसाब- चान्द्रवर्ष-गणना। से तेरह वर्षों में पाँच महीने और बारह रात्रियाँ अधिक हो जाती हैं।" भीष्मके दूसरी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात यह है कथनका सारांश यह है कि सौर माससे कि इस बातका प्रमाण भारतीय-युद्धकी तेरह वर्षोंके पूर्ण होनेके पहले हो पाण्डव कथामें ही मिलता है कि भारतीय-युद्ध प्रकट हुए; परन्तु चान्द्र वर्षों के हिसाबसे बहुत प्राचीन समयमें हुआ था । कौरवों तेरह वर्ष पूर्ण हो गये और पाण्डवोंने और पाण्डवोंने चूत खेलकर अन्तमें करार पूरा किया । अब इसपर कुछ यह करार किया था कि जो पराजित होंगे लोगोंका इस विषयमें और यह कहना है उन्हें बारह वर्षतक वनवास और एक कि-"भीष्मने यहाँ एकपक्षीय न्याय वर्षतक अज्ञानवास भोगना पड़ेगा: और किया है। शब्दोंका अर्थ हमेशाकी समझ- अशातवासके समयके अन्दर प्रकट होने के अनुसार ही किया जाना चाहिये। पर फिर भी उतना ही वनवास भोगना यह बात प्रकट है कि यदि चार रुपये में पड़ेगा । इस निश्चयके अनुसार द्यूतमें इंधनकी गाड़ी बेची जाय, तो सचमुच पराजित हो जानेके कारण पाण्डवोंने गाड़ी पर रक्खी हुई जलाने योग्य लकड़ी अपना सब राज्य दुर्योधनके अधीन कर ही बेची जाती है, न कि लकड़ीकी खुद गाड़ी दिया और वे वनवासको चले गये। वन-ही। क्या करारके समय सौर या चान्द्र वास और प्रज्ञातवास पूरा करने पर जब वर्षोंकी बात तय कर ली गई थी तब वे प्रकट हुए, तब दुर्योधनसे अपना राज्य कहना पड़ेगा कि अपने देशमें पूर्वकालसे माँगने लगे। दुर्योधन कहने लगा कि- महीने चान्द्र और वर्ष सौर समझे "पाण्डवोंने वनवास और अज्ञातवास जाते हैं, इसलिये उक्त प्रश्न ही उपस्थित पूरा नहीं किया है" और पाण्डव कहने नहीं हो सकता। वर्ष तो सौर ही थे। लगे कि-"पूरा किया है ।" अतएव इस परन्तु भीष्मने उन्हें चान्द्र मानकर वादविवादके कारण भारतीय-युद्ध उप- पाण्डवोंके पक्षमें न्याय किया ।" यह खित हुआ। कुछ आक्षेपकोंने इस विषय- दलील सचमुच अत्यन्त महत्वपूर्ण है। के सम्बन्धमें एक बहुत बड़ा आक्षेप उप- क्या भीष्मने सचमुच एकपक्षीय न्याय स्थित किया है। वह यह है कि यद्यपि किया है ? यदि धैदिक कालसे भरत- पाण्डव तेरह वर्षोंके पूर्व ही प्रकट खण्डमें सौर वर्ष प्रचलित था, तो प्रतिक्षा. हुए, तथापि युद्ध प्रारम्भ करनेका पाप पूर्तिके ही सम्बन्धमे चान्द्र वर्षोंसे गणना