- भारतीय युद्धका समय *
११५ ऐसे नहीं मिलते जिनसे बुद्ध के पहलेका मैक्समूलरने आर्चडीकन प्रैटको इस इतिहास जाना आय । परन्तु, हमारे ! बातका गणित करनेके लिये कहा कि ऋग्वेद आदि वैदिक ग्रन्थ पिरामिडसे ; उत्तरायण धनिष्ठा नक्षत्र पर कब होता भी अधिक भव्य तथा अभेद्य हैं। इन होगा। ये भी अधिक खींचातानी करने ग्रन्थोंमें ज्योतिषके विषयमें पाये जाने पर इस समयको सन् ईसवीसे पूर्व ११८६ वाले उल्लेख, समय निश्चित करनेके लिये, के बाद नहीं बतला सके। सारांश यह है शिलालेखोंसे भी अधिक विश्वसनीय कि जब वेदाङ्ग ज्योतिषके समयको सन् और निश्चयात्मक हैं। अतएव हिन्दुस्थान- ईसवी के पहले १२०० अथवा १४०० वर्ष का प्राचीन इतिहास सहस्रोंकी संख्या मानना चाहिये, तो शतपथ-ब्राह्मणका बतलाया जा सकता है। वह इस तौर समय उससे भी पहले होना चाहिये। पर:-ऋग्देवका समय, सन् ईसवीसे अर्थात् , वह सन् ईसवीसे पूर्व ८०० वर्ष हो पूर्व चौथी सहस्री, अर्थात् ४०००से ३००० ही नहीं सकता। यहाँ भी पाश्चात्य विद्वान् तक: आयुर्वेद और ब्राह्मण ग्रन्थोंका समय, यही तर्क करते हैं कि धनिष्ठामें उदगवन तीसरी सहस्त्री, अर्थात् ३०००से २००० का स्मरण रहा होगा और वेदाङ्गज्योतिष तक: वेदांगोंका समय, दूसरी सहस्री, बिलकुल अर्वाचीन कालमें सन् ईसवीके अर्थात् २०००-१००० तक: और गृह्य तथा पूर्व ३०० के लगभग बना होगा। उनका अन्य सूत्रोका समय, पहलीसहस्त्री, अर्थात् : कथन है कि जब धनिष्ठाके प्रारम्भमें १००० से सन ईसवीके श्रारम्भतक । उदगयनथा, उस समय वेदाङ्ग ज्योतिषको शंकर बालकृष्ण दीक्षितने शतपथ ब्राह्मणका गणितपद्धति स्थिर की गई होगी; परन्तु जो समय उसके अन्तर्गत ज्योतिष-विष- : जब वह ग्रन्थ बना तब पिछली परिस्थिति यक वचनके आधार पर निकाला है, वह ' का उल्लेख वर्तमानके तौर पर किया गया। किसी तरहसे अमान्य समझा जाने योग्य । परन्तु यदि यह सच है कि वेदारकी · ज्योतिषपद्धति उस समय स्थिर हुई थी, । तो उसी समय ग्रन्थका तैयार होना वेदांग ज्योतिषका प्रमाण । मानने में क्या हर्ज है ? दूसरी बात यह है कि उस समय धनिष्ठामें जो उदगयन यह बात अन्य प्रमाणोंसे भी निश्चित होता था, वह १००० वर्षोंमें, प्रन्यके लिये मालूम होती है कि शतपथ-ग्राह्मणका, जानेके समय, अवश्य ही बदल गया सन् ईसवीके पूर्व ८०० वर्षका, पाश्चात्य होगा। अर्थात, धनिष्ठामें उदगवन सन् विद्वानोंके द्वारा ठहराया हुआ समय ईसवीके १४०० अथवा १२०० वर्ष पहले गलत है। वेदाङ्ग-ज्योतिषके समयको था, और ग्रन्थ लिखा गया ३०० में। बीच- दीक्षितने, उसमेंके ज्योतिष-सम्बन्धी एक के १००० वर्षाकी अवधिमे वह पीछे वचनके आधार पर, निश्चित किया है। अवश्य हटा होगा और यह बात प्रन्य- उसमें कहा गया है कि उत्तरायण धनिष्ठा- कारको मालूम हुए बिना न रही होगी। में होता है। इससे दीक्षितने वेदाङ्गका तब फिर वह कैसे बतलाता कि उदगयन समय गणितसे सन् ईसवीके १४०० धनिष्ठामें था? और वह उस गणित- वर्ष पहले कायम किया है। इस समयक! पद्धतिका स्वीकार कैसे करता जो उसके सम्बन्धमें शङ्का होनेके कारण प्रोफेसर अाधार पर रची हुई हो ? वराहमिहिरने नहीं है।