पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१३५

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  • भारतीय युद्धका समय 8

प्रमेय सिद्ध हुआ है। यह यह है कि भार- यह जो धारणा प्रचलित है कि ऋग्वेदको तीय-यह भावेदकेसनन्तर और यजयके व्यवस्था करनेका काम ज्यासने किया और पहले, विशेषतः शतपथ ब्राह्मणके पहले, ये व्यास भारतीय युद्ध के समय थे, वह हुमा । अब यदि हम निश्चयके साथ उक्त विधानके अनुकूल है । अर्थात्, बरला सके कि ऋग्वेदका, यजुर्वेदका ऋग्वेदके बाद भारतीय युद्ध १०० वर्षोंके अथवा शतपथ-ब्राह्मणका समय कौनसा अन्दर हुश्रा और भारतीय युद्ध के बाद है, तो भारतीय युद्धका समय निश्चयः । ब्राह्मण ग्रन्थ विशेषतः शतपथ-ब्राह्मण- पूर्वक बतलाया जा सकता है । ऋग्वेद ग्रन्थ तैयार हो गया । महाभारतसे भी, और यजुर्वेदका समय निश्चित करने में ऐसा ही मालूम होता है कि शतपथः थोडीसी अड़चन है । यह एक प्रसिद्ध ब्राह्मणको रचना भारतीय युद्धके बाद बात है कि ऋग्वेदके भिन्न भिन्न सूक्त भिन्न हुई। आगे इस बातका उल्लेख किया ही भिन्न समयमें बनाये गये हैं। इसी प्रकार जायगा कि शान्ति० अ० ३१८ में बतलाये यजुर्वेदकी भी रचना कई शताब्दियोंतक अनुसार शतपथ ब्राह्मण और शुक्ल बजु- होती रही है, क्योंकि ऋग्वेदके पुरुषसूक्त- वेदको रचना याज्ञवल्क्यने कब और कैसे में यजुर्वेदका उल्लेख है। खैर, यह बात की। उससे महाभारत कालमें भी यही निर्विवाद मालूम होती है कि शतपथ- विचार लोगों में प्रचलित होना पाया जाता ब्राह्मणके पहले ऋग्वेद सूक्तोंकी रचना है कि शतपथ-ब्राह्मण भारती युवके बाद पूरी हो गई थी और ऋग्वेदका एक तैयार हुआ। अतएव, अब यहाँ अत्यन्त निश्चित पूर्वापर-सम्बद्ध ग्रन्थ तैयार हो महत्त्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित होता है कि, क्या गया था । प्रोफेसर मैक्डानल अपने शतपथ ब्राह्मणका समय निश्चित किया पूर्वोक्त प्रन्थके ४६ पृष्ठ में कहते हैं, कि जा सकता है ? ब्राह्मण ग्रन्थोंकी ऋग्वेद-विषयक भिन्न भिन्न चर्चाओंसे ऐसा मालूम होता है कि, कृत्तिकाका ठीक पूर्वमें उस समय ऋग्वेदकी संहिता एक विशिष्ट ___ उदय होना। रीतिसे स्थिरतापूर्वक निश्चित हो चुकी प्रोफेसर मैक्डानलने ब्राह्मण-प्रन्थोंका थी; यजुर्वेदके गद्य वचनोंके समान उसमें समय सन् ईसवीके पहले ८००-५०० तक अनिश्चित-पन नहीं था । शतपथ-ग्राह्मणमें बतलाया है। परन्तु यह समय अत्यन्त एक स्थान पर स्पष्ट कहा गया है कि- भीरुतासे अर्वाचीन कालकी अोर घसीटा “यजुर्वेदके गद्य वचनोंका पाठ बदलना हुआ है। प्रोफेसर मैक्डानल ऋग्वेदको सम्भव है, परन्तु ऋग्वेदकी ऋचाओंका सन् ईसवीके पूर्व १५००-१००० वर्ष तकका पाठ बदलना असम्भव है।" यही नहीं बतलाते हैं। परन्तु प्रोफेसर जेकोबी सन् किन्तु ब्राह्मण-प्रन्यों में यह भी उल्लेख पाया ईसवीके पूर्व ४००० वर्षांतक पीछे जाते जाता है कि ऋग्वेदके अमुक सूक्तमें इतनी हैं। चाहे जो हो, शतपथ-ब्राह्मणके समय- प्रचाएँ हैं और इस समय भी ऋग्वेदमें को अत्यन्त निश्चित रीतिसे स्थिर करनेके उतनी ही ऋचाएँ मिलती हैं। कहनेका लिये एक प्रमाल मिल गया है। उसके तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण-प्रन्धोंके समय आधारसे इस ग्रन्थकासमय ईसवी सनसे समत्र ऋग्वेद अन्य सुबद्ध, निश्चित और पूर्व ३००० वर्ष ठहरता है। यह खोज सर्वयाम्य श्रुति-ग्रन्ध समझा जाता था। हमारी की हुई नहीं है। इस खोजका