- .महाभारतमीमांसा है
कारण यह है, कि यदि हमें किसी दुसरी भी नहीं है। यह कहीं नहीं बतलाया गया रीतिसे गर्गका समय मालूम होता, तो है कि युधिष्ठिरके राज्यारोहण-कालमें इस कथनका कुछ अर्थ भी हो सकता। सप्तर्षि मघाके अमुक बिंदुमें थे। यह परन्तु हमें गर्गका कुछ भी समय मालूम नहीं माना जा सकता कि यह गर्गकी नहीं है, ऐसी अवस्थामें वह केवल कल्पित बात होगी । इसका भी कहीं कल्पनासे नहीं माना जा सकता। प्रमाण नहीं मिलता कि गर्ग शक-सम्बद यह.बात. सम्भव नहीं है कि गर्ग और १७४ में हुआ (बल्कि निश्चयपूर्वक घराहमिहिरको सप्तर्षियोंकी गतिहीनता- मालूम है कि यह शक सम्वत्के पहले का पान न था। अर्थात् स्पष्ट है कि हुआ होगा)। यह बात अपने सिद्धान्तसे यह गति कल्पनासे मान ली गई है, मिलती है इसलिये इसे भी कल्पनाके प्रत्यक्ष नहीं है। अच्छा, क्षण भरके लिये आधार पर मान लें और यह बात हमारे मान लिया जाय कि गर्ग और वराहमि- मतसे मिलती है कि युधिष्ठिरके समयके हिरको सप्तर्षियोंकी गति मालूम थी: बिंदुमें ही सप्तर्षि गर्गकालीन शक-सम्वत् गर्ग शक-संवत् १७५ में गणित करने :१७४ में थे, इसलिये इसे भी कल्पनासे बैठा, और वह युधिष्ठिरका समय गणितके मान लें ! तब तो सारा सिद्धान्त मान लेने द्वारा निकालने लगा। परन्तु, स्मरण | पर ही रहा ! इस तरह बारीकीसे विचार करने पर यह नहीं कहा जा सकता, कि आसन्मघासु मुनयः शासतिगर्गने युधिष्ठिरका शक पूर्व २५२६ वर्ष- पृथिवीं युधिष्ठिरे नृपतो। का जो निश्चित समय बतलाया है, उसे इस बातको अाधार-स्वरूप माननक उसने गणितके द्वारा निकाला । अस्तु । लिये महाभारतमें कोई वचन नहीं है। दीक्षितका कथन है कि मघा, पूर्वा, उत्तरा, फिर, गर्गने इसको कहाँसे लिया? अच्छा । हस्त और चित्रामेंसे हर एक नक्षत्रमें यह आधार-स्वरूप बात कहींसे लाई गई सप्तर्षि दिखाई दे सकते हैं। तब, प्रश्न है कि हो, परन्तु जो सप्तर्षि प्रत्येक नक्षत्रमें १०० गर्गको अपने समयमें यह कैसे दिखाई वर्षतक रहते हैं वे कुछ एकही स्थानमें पड़ा कि सप्तर्षि मघामें ही थे ? दूसरी नहीं रहते। वे एक नक्षत्रसे दूसरे नक्षत्र बात यह है कि शक-सम्बत् ४४४में वराह- में उड़कर नहीं चले जाते। तब गणित मिहिरको भी सप्तर्षि मघामें ही दिखाई करनेके लिये यह मालूम रहना चाहिये पड़े इससे तो गर्गके समय अर्थात् शक था, कि युधिष्ठिरके समयमें सप्तर्षि मघा- सम्वत् १७४ में उनका मधाके पीछे होना नक्षत्रके किस बिंदुमें थे। फिर, यह भी पाया जाता है। इस दशामें यह कहना मानना पड़ेगा कि शक सम्वत १७४ में भी गलत मालूम होता है कि अपने मघा नक्षत्रमें सप्तर्षिको ठीक उसी बिंदु समयमें सप्तर्षिका मघामें होना मान- पर गर्गने देखा था। ऐसा माने बिना कर गर्गने गणित किया। सारांश, यह यह सिद्ध करना असम्भव है ,कि शक- कहना बिलकुल झूठ होगा कि गर्गने सम्वत्के प्रारम्भमें युधिष्ठिरको हुए २५२६ इस समयको कल्पनाके द्वारा जाना । वर्ष बीत चुके थे । सारांश यह है कि अर्थात्, उसे वंशावलीका अथवा किसी सभी काल्पनिक बातोंको मानना पड़ता दुसरे प्राचीन ग्रन्थकारका पूर्व प्राधार है और उन्हें माननके लिये कार्ड प्राधार अवश्य रहा होगा । अतएव, ऐसी दशामे,