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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

प्रारम्भके समयके निकट आ जाता है। कालीन राजाका नाम एक हजार वर्षों में तथापि हमारा मत है कि शक-काल शब्द- अप्रसिद्ध हो जानेके कारण, वराहमिहिर- का अर्थ 'शाक्य मुनि अथवा बुद्धका समय ने उस नामका उपयोग शक राजा अथवा कभी नहीं समझा जा सकता । बुद्ध. शक-कालके लिये कर दिया। वराहमिहिर का शक नाम कहीं नहीं लिखा गया गर्ग-ज्योतिषके वचनको विशेष प्रमाणभूत है। शक और शाक्य शब्दोको जबर्दस्ती मानता था । इस कारण उसने अन्य एकार्थवाची समझ लेनेसे कुछ लाभ ज्योतिषियोंके मतके विरुद्ध भारतीय युद्ध नहीं। इसकी उपपत्ति भिन्न प्रकारसे को कलियुगके ६५वें वर्षमें माना है। बतलानी होगी। • कल्हणने अपने काश्मीरके इतिहासका , अव यह निश्चय कर सकना असम्भव मेल उसीके आधार पर मिलाया। है कि गर्गने मूल समय किस प्रकारका काश्मीरमें यह धारणा थी कि भारतीय बलताया था। यह बात प्रायः निर्विवाद युद्धके समयमें काश्मीरका राजा पहला खी है कि गर्ग महाभारतके पहले हो गया गोनर्द था और जब दुर्योधनके लिये कर्णने है। उसका उल्लेख शल्य पर्वके सरखती दिग्विजय किया तब वह लड़ाई में मारा श्राख्यानमें और अनुशासन पर्वमें उप- गया तथा उसका लड़का गद्दी पर बैठा। मन्युके श्राख्यानमें हुआ है। उसमें उसके कल्हणने यह लिख रखा है कि काश्मीरमें ६४ प्रलोके ग्रन्थका भी उल्लेख है। श्राज- ऐसी दन्तकथा प्रचलित थी कि छोटी कल “गर्गसंहिता" नामक जो ग्रन्थ प्रच- अवस्थाके कारण वह लड़का भारतीय लित है, उसमें ४० उपाङ्ग है । अर्थात् यह युद्ध में नहीं शामिल हुश्रा । यदि यह मान ग्रन्थ बहुत करके वही ग्रन्थ न होगा। लिया जाय कि भारतीय युद्ध कलियुगके तथापि यह उसीकी दूसरी श्रावृत्ति होगी। प्रारम्भमें हुश्रा, तो शक पूर्व ३१७६ वर्षा- इसमें राशियोंका उल्लेख नहीं है, इससे की व्यवस्था गोनर्दके अनन्तर होनेवाले यह प्रन्थ भी शक सम्वत्के पहलेका राजाओंको अवधितक लगनी चाहिये मालूम होता है । सारांश, गर्ग शकके और वैसी व्यवस्था कल्हणके पहले लग बहुत पहले हो गया है । उसके ग्रन्थमे भो चुकी थी । परन्तु भारतीय युद्ध के शक-कालका उल्लेख होना सम्भव नहीं समयको मनमाना मान लेनेके कारण है। इसलिये मालूम होता है कि गर्गका कल्हणको गोनर्द आदि राजाओंकी भिन्न उक्त वचन किसी तत्कालीन राजाके व्यवस्था करनी पड़ी। यह बात काश्मीरके सम्बन्ध होगा। उसने यह लिखा होगा इतिहासमें सहज ही लिखी हुई है कि कि युधिष्ठिरको हुए अमुक राजातक २५६६ गोनई पाण्डवोंके समयमें था। इसका अथवा २५२६ वर्ष हुए और वह राजा कारण यह है कि हिन्दुस्थानका प्रत्येक गर्णका समकालीन होगा । गर्ग और राजवंश अपना सम्बन्ध पाण्डव-सम- घराहमिहिरके बीचमें हज़ार वर्षका अंतर कालीन योद्धाओसे भिड़ा देने में भूषण दिखाई पड़ता है क्योंकि गर्ग सन् ईसवी- समझता है । कल्हणने राजाओंकी प्रच- के ४०० वर्ष पूर्वका और वराहमिहिर सन् लित वंशावली में अपनी ना समझके ईसवीके ५०० वर्षसे भी अधिक पीछेका अनुसार घटा बढ़ाकर एक और नई है। ऐसी दशामें इसकी यह उपपति भूल कर डाली। .. . बतलाई जा सकती है, कि गर्गके सम... गर्गने जो २५२६ की. संसा दी है