3 क्या भारतीय युद्ध काल्पनिक है ? * ८५ की लोग वासदेव देवताका वर्णन हिरॅक्लीज़के नामसे किया वैसी वे नहीं हैं। परन्तु यथार्थमें यह है । वही श्रीकृष्ण है। यह बात उसके इस मानना ही सदैव उचित है कि जैसी कथा वर्णनसे प्रकट हो जायगी-"हिरॅक्लीज़की सुनी गई वैसी ही वह हुई होगी। यदि पूजा शौरसेनी लोग करते हैं और इन आवश्यकता हो तो उस कथाका वह लोगोंका मिथोरा नामका मुख्य शहर है।" चमत्कारिक भाग छोड़ दिया जाय, जो अर्थात् 'हिरॅक्लीज़' और 'हरि' को एकत्र अाधुनिक दृष्टिसे बुद्धिवादकी कसौटी करके उसने श्रीकृष्णका उक्त वर्णन किया पर सत्य प्रतीत न हो; परन्तु उस कथाके है। उसने यह भी कहा है कि हिरॅक्लीज़के स्वरूपको ही उलटा-पलटा कर डालना पाण्डिया नामकी एक कन्या थी परन्तु किसी प्रकार युक्ति-सङ्गत नहीं हो सकता। यह वर्णन भ्रमसे किया गया है। कुछ इस दृष्टिसे स्वीकार करना होगा कि भी हो, इससे यह प्रकट होता है कि भारती-कथाके जो रूपान्तर ऊपर बतलाये श्रीकृष्ण और पाण्डवोंके परस्पर सम्बन्ध- गये हैं वे निस्सन्देह मानने योग्य नहीं हैं। को कथा मेगास्थिनीज़के समयमें भी यूरोपियन पण्डितोंकी राय हमेशा प्रसिद्ध थी। इससे भी पहलेका प्रमाण ऐसी ही देख पड़ती है। इस बातका एक पाणिनिके एक सूत्रमें पाया जाता है जो और उदाहरण लीजिये। उनकी राय है इस प्रकार है-"वासुदेवार्जनाभ्याम कि महाभारतमें पहले पाण्डवोंकी कथा कन्।" इस सूत्रसे यह बात प्रकट होती ही नहीं थी । श्रारम्भमें कुरु और भारत- कि उस समय लोग वार की कथा थी। परन्त बौद्ध धर्मके गिर अर्जुनकी भक्ति किया करते थे। सारांश, जाने पर भारतोंके स्थानपर पाण्डवोको श्रीकृष्ण और भारती-कथाका सम्बन्ध रखकर ब्राह्मणोंने अपने धर्मकी दृढ़ताके बहुत प्राचीन है, वह कुछ महाभारतको लिये उसमें श्रीकृष्णकी भक्ति शामिल कर रचनाके समय पीछेसे शामिल नहीं किया दी और महाभारत बना दिया। उनका गया है। कथन है कि-"मूल भारत लोग पजाबके ही निवासी थे परन्तु जब भारतोके श्रीकृष्ण आधुनिक व्यक्ति न होकर स्थानमें पाण्डव रखे गये, तब इन्द्रप्रस्थ बहुत प्राचीन हैं । उनका उल्लेख छान्दोग्य उनकी नई राजधानी बनवाई गई।" इस उपनिषद् में इस प्रकार पाया जाता है- मतका समर्थन करनेके लिये वे कहते हैं "कृष्णाय देवकीपुत्राय ।" जिस कि पाण्डवोंका उल्लेख वैदिक साहित्यमें प्रकार जनमेजय पारितितकी चर्चा गृह- बिलकुल नहीं है । यह उल्लेख पहले- दारण्यमें है, उसी प्रकार समकालीन पहल बौद्ध जातकों में देख पड़ता है। छान्दोग्यमें श्रीकृष्णका भी उल्लेख है। बौद्ध जातकके समय पाण्डवोंकी कथा अर्थात् , यह प्रकट है कि ये दोनों व्यक्ति अवश्य प्रचलित होगी। इसके बाद ही ब्राह्मण-कालीन हैं। सारांश, भारती-युद्ध- मूल भारतमें परिवर्तन करके पाण्डवोंकी के साथ श्रीकृष्णका सम्बन्ध काल-दृष्टिसे कथा शामिल की गई । इस बातका पता भी असम्भव नहीं है। नूतन पद्धतिसे (उन पण्डितोके मतानुसार) एक प्राचीन विचार करनेवाले विवेचकोंकी यह मानने- लोकसे चलता है जो भलसे महाभारतमें की ओर साधारण प्रवत्ति हश्रा करती है. रह गया है। वन पर्वके ४३वें अध्यायमें कि प्राचीन कथाएँ जैसी बनलाई गई हैं घतका फिरसे वर्णन करते समय युधि- अर्जन
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