पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१०९

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क्या भारतीय युद्ध काल्पनिक है ? - उसी प्रकार एक स्त्रीके लिये अनेक पति पाया जाता है। जब हम इन सब बातोंका नहीं हो सकते । कहनेका तात्पर्य यह है विचार करते हैं और इस बात पर भी कि उस समय एक स्त्रीके अनेक पतियों- ध्यान देते हैं कि भारतका खरूप अत्यन्त का रिवाज नहीं था। तो फिर इन अल्प था तथा श्रीकृष्ण-भक्तिका प्रायः काल्पनिक पाण्डवोंने ऐसा विवाह कैसे उदय ही हुआ था, तब हमें आश्चर्य करने. किया ? सच बात तो यह है कि पाण्डव की कोई आवश्यकता नहीं कि ब्राह्मण- किसी प्रकार काल्पनिक नहीं हैं। भीमने ग्रन्थों में भारती-युद्ध अथवा युधिष्ठिर रणभूमिमें दुःशासनका लहू पिया था: आदिका कुछ भी उल्लेख नहीं है । यहां यह शास्त्र-विरुद्ध भयानक कार्य उसने यह बतला देना चाहिये किऐतरेय ब्राह्मण- क्यों किया ? सारांश, पागडय कुछ सद्गणों- में वैचित्रवीर्य धृतराष्ट्रका उल्लेख है । के अवतार नहीं बनाये गये हैं, बल्कि वे सारांश, भारती-युद्धका उल्लेख ब्राह्मणोंमें साधारण मनुष्योंके समान ही चित्रित । नहीं है, इससे कुछ भारती-युद्ध काल्प- है। इस प्रकार यह बात सिद्ध है कि निक सिद्ध नहीं होता और न भारती भारती-युद्ध और भारती-योद्धा काल्पनिक योद्धागण ही काल्पनिक हो सकते है। नहीं हैं। ग्मेशचन्द्रदत्त युद्धका होना तो मानते हैं, यहाँ शङ्का हो सकती है कि यदि पर वे कहते हैं कि पाण्डव काल्पनिक ब्राह्मण-प्रन्थोंमें भारती-युद्धके नाम अथवा सद्गणोंकी मूर्ति हैं । स्मरण रहे कि दोनोके उल्लेखका न पाया जाना प्रमाण न हो तो, सम्बन्धमें उल्लेखाभावके प्रमाणका समान कमसे कम आश्चर्यकारक अवश्य है। परन्तु उपयोग किया गया है । अतएव यह यह भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जिस समझमें नहीं आता कि एक बात सच बृहत् खरूपमें भारती-कथा इस समय क्यों मानी जाय और दूसरी झूठ क्यों हमें देख पड़ती है, वह स्वरूप उस समय । कही जाय। नहीं था । सौतिने महाभारतको जो वर्त- कुछ लोग युद्धको सत्य मानकर यह मान वृहत् स्वरूप दे दिया है, वह उस कहते हैं कि भारती युद्ध के जिस तरहसे समय नहीं था । उस समय युधिष्टिरका होनेका वर्णन महाभारतमें किया गया अश्वमेध बहुत प्रसिद्ध न था। युधिष्ठिरने है उस नरहसे वह युद्ध नहीं हुआ, किन्तु एक ही अश्वमेध किया था, पर उसके भिन्न प्रकारसे हुया है। उस मतका भी पहले कितने ही राजाओंने अनेक अश्व- उल्लेख यहाँ कर देना आवश्यक है। वेवर- मेध किये थे । उस समय श्रीकृष्णकी का मत है कि उस युद्ध में जनमेजय प्रभान भक्तिका भी बहुत कम प्रचार हुआ था। : था और उसका नाश उसी युद्ध में डुअा। जो भागवत-पन्थ श्रीकृष्णकी भक्तिके उसकी यह कल्पना बृहदारण्यमें पाये आधार पर स्थापित है, उसका उस समय जानेवाले इस उल्लेखके आधार पर है कि उदय भी न हुआ था: यदि उदय हुआ। उसमें किसी ऋषिने याज्ञवल्क्यसे पूछा है- मी हो तो उसका प्रचार बहुत कम था। "पारिचिताः अभवन् । कपारि- परीक्षितके पुत्र जनमेजय और उनके तीन सिताः अभवन्" अर्थात् पारिक्षितोका भाइयोने भिन्न भिन्न प्रकारके चार अश्व- क्या हा? इस प्रश्नके आधारपर वेबरमे मेध किये थे, इसी लिये उनका नाम उस अपने काल्पनिक विचार इस तरह प्रकट अश्वमेध-वर्सनके प्रसङ्गम शतपथ ब्राह्मणमें किये हैं-"इलसे कहना पड़ता है कि