- बस अिस आखिरी वाक्यमें बापूकी हार - प्रेमके वश होकर खासी हुजी हार -है । मीराबहनके जितनी प्रेमपूर्ण सेवा किसीकी नहीं है । यह अक्षरशः सही है । शंकरलाल जब बापूके साथ थे, तब अनकी सेवा अपूर्व थी। कृष्णदासजीकी सेवामें जो सावधानी दीखती थी, वह अनके निर्मल प्रेमका परिणाम था। मगर मीराबहनकी सेवामें कुछ और ही मिठास है, क्योंकि अिसमें अपने आपको मिटा डालनेकी बात है और दिनरात बापकी ही निष्ठा अव्यभिचारी भक्ति है । असका मुकाबला न शंकरलाल कर सकते हैं और न कृष्णदास । मेरा तो अिन तीनोंके नजदीक पहुँचनेका भी वृता नहीं है । जिसके कारण स्पष्ट है । मुझमें तो न वह अव्यभिचारी भक्ति है और न शरीर या चित्तकी वह शुद्धि और पवित्रता है । मैं तो छोटे छोटे सौंपे हुओ काम भी भूल जाता हूँ, जब . कि मीराबहन सेवाके अनेक काम पैदा कर लेती है और बापूको अन्हें स्वीकार करनेको मजबूर कर देती है। मुझे आज तकियेको खोली चढ़ानेके लिअ कहा । मैंने 'हाँ' कह दिया । तुरन्त कोी दूसरा काम सौंपा तो असमें लग गया और खोली चढ़ाना रह गयी । और वह मुझे याद आये असके पहले वल्लभभाभीने खोली चला दी। श्रीश्वरने बापूके चरणों में ला पटका है तो किसी दिन वह शक्ति भी देगा, अित श्रद्धासे यह ढचर गाड़ी चलाये जा रहा हूँ।
.. अपने पत्रमें अद्भुत गुजराती कहावत 'धणीने सूझे ढाकणीमा ने पड़ोसीने न सझे आरमीमां' के विषयों बापने मुझे पूछा "सिसकी अंग्रेजी आती है ?" अंग्रेजी तो नहीं सूझी। मगर बादमें अिसका पृथक्करण किया, तो मालूम हुआ कि मैं गुजराती अर्थ भी ठीक ठीक नहीं समझ पाया हूँ। बापू भी ठीक ठीक नहीं समझे थे। सुबह झुठकर अिमी कहावतके बारेमें मैंने वल्लभभाओसे पूछा । बापू कहने लगे : "क्यों, जिनकी परीक्षा लेते हो ?" मैंने कहा- " वल्लभमाओके पास असी कहावतोंका अच्छा भण्डार है। अिसलिमे शायद अिन्हें समझमें आ जाय । बापने ." हाँ, यह तो जानता हूँ, मगर अिसके अर्थके विषयमें हमें कहाँ शिकायत है ? हमारे सामने तो जिसकी रचनाका सवाल है। भित कहावतका ठीक टीक शुपयोग ने किया जाय? अर्थ नो साफ है कि घरवालेको जो अधेरेमें दीखे, बद्द परायेक दिन ददाड़े भी न दीखे । मगर जिसका शब्दार्थ किस तरह बैठाया जाय ?" भिम ताह बान हो रही थीं कि बाजारसे कुछ मँगवाने की बात चली। यापू तो जिन चीजोंमें कुदरती तौर पर काँटछाँट करते ही है। वल्लभभाजी बोले आप बचायेंगे तो जेलवाले ग्या जायेंगे। ये लोग तो किसी न किसी कहा ८६