पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/५०

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" बापू बोले- . बापूने बताया "अिकवालका राष्ट्रीयताका विरोध दूसरे मुसलमानोंमें भी भरा है, अितनी ही बात है कि कोी बोलते नहीं। अपने 'हिन्दोस्तां हमारा' गीतसे अब वे भिनकार करते हैं।" मैंने कहा- "अिनका और शौकत मुहम्मदका Pan-Islamism -अिस्लामी साम्राज्य अकसा है या नहीं। "अकसा है, मगर अिस Anti-nationalism (राष्ट्रीयताका विरोध ) से Pan-Islamism (अिस्लामी साम्राज्य भावना )के साथ कोी सम्बन्ध नहीं । मैं मुसलमान पहले और हिन्दुस्तानी पीछे, अिस चातका में बचाव कर सकता हूँ, क्योंकि मैं तो यह कहनेवाला आदमी हूँ न कि मैं पहले हिन्दू हूँ, अिसीलिमे सच्चा हिन्दुस्तानी हूँ? मुहम्मदअली अिस बातको ठीक तौर पर बैठा सकते थे। जिन लोगोंके लिऔ 'मैं मुसलमान पहले हूँ' जिसका वह पुराना अर्थ रहा ही नहीं। आज तो मैं मुसलमान हूँ यानी Nationalist (राष्ट्रीय) नहीं यह अर्थ हो रहा है। शंकरलालके भाजी धीरजलालके मरनेके समाचार आये । हम सबको बड़ी चोट पहुँची । धीरजलाल जैसे आज्ञाकारी और भ्रातृभक्त माओके कारण शंकरलाल घरकी कुछ भी चिन्ता किये बिना या घर छोड़कर सब कुछ देशको समर्पण कर सके थे। जिस खयालसे दिलको बड़ा अद्वेग हुआ कि शुस भाभीके शुठ जानेले शंकरलाल पर अकल्पित और बहुत ही दुःखदायक बोझ पड़ जायगा । वाहने अन्हें और धीरजलालकी विधवाको आश्वासनके तार दिये । बापूको पनी चन्ता जरा भी नहीं, मगर दूसरोंके लिओ वे बहुत व्याकुल हो जाते हैं । यहाँ बन्द हुने बैठे हैं, तो भी अिस बातके २७-३-३२ अनेक अदाहरण यहाँ भी रोज मिलते ही रहते हैं। 'सरदारके लिओ तुम क्यों नहीं कुछ पकाते ? तुम पर तो अन्होंने बड़ी आशायें बाँध रखी थीं।' असे मीठे अलाहने देकर मुझे पकानेकी प्रेरणा की। हरिदास गांधीके बारेमें तो मेजर मार्टिनको लगभग अल्टिमेटम ही दे डाला । मेजर मार्टिनको खत लिखा कि दूसरे कैदी भाभियोंको पत्र लिखनेकी छूट तो होनी ही चाहिये । और वह भेजा जाय उससे पहले ही मेजर भंडारी यह अिजाजत भी दे गये । अिसलिओ तुरन्त ही मीराबहन, काका, प्रभुदास, मणि, जमनालालजी और देवदास सबको पत्र लिखे । मीराबहनको तो अिस ख्यालसे अेक पत्र लिखा ही था कि वह पत्र न मिलनेसे रोज व्याकुल रहती होगी। मगर उनके दो पत्र आ गये, अिसलिमे पहुँचका अक और लिख दिया और जेलरसे प्रार्थना की कि यह पर तुरन्त भेज दिया जाय । सरदारको रातमें मच्छरेकि मारे नींद नहीं आती,