पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३९२

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अन्हें खुब तिरस्कारके साथ सताते होंगे और अन्हें ज्यादा कुचल डाला होगा। और हम छुटे तब तक जो होना था, सो पूरी तरह हो चुका होगा। मुझे तो यह चीज सारे निर्णयमें जितनी भयानक लगती है कि निर्णयके और तमाम हिस्से बहुत अच्छे या मंजूर कर लेने लायक होते, तो भी मैं जिसके खिलाफ असा ही कदम झुठानेको तैयार होता ।" " मुझे फचल विचार कलकी बातचीतके वापके कुछ कुछ अद्गार हमेशा याद रहेंगे असा महसूस ही नहीं होता कि यहाँ मेरा जीवन वेकार २३-८-२३२ जा रहा है। यहाँ बैठा बैठा मैं बहुत कुछ काम कर सकता हूँ और बहुतोंको रास्ता बता सकता हूँ। अक पल भी व्यर्थ नहीं जाता | सांसारिक मृत्यु' शब्द अस कारण तक ही ठीक है जिस कारणसे सरकारने हमें जेलमें बन्द किया है । असके अलावा और मामलोंमें हमें जितना काम करना हो कर सकते हैं। डॉक्टर मेहताके मामलेमें अगर मैं सबसे मिल सक्, तो पूरी तरह निबटारा करा दूं। आश्रमका पथप्रदर्शन कर रहा हूँ, सो तो तुम देख ही रहे हो।" अिसी दृष्टिसे बहुतसे पत्र लिखे जाते हैं । कैम्प जेलके बहुतसे पत्र धार्मिक शंकाओं और प्रश्नोंवाले होते हैं। दरवारीने पूछा था भारस्वरूप होते हैं, परन्तु कुछ क्रम ही असा मालूम होता है कि अक खास समय तक सभी मनुष्य विचार - कल्पनामें रमे रहते हैं। मगर सत्यशोधक अनुभव होने पर अससे भी छूट जाता है । यह सच है कि निष्काम कर्मसे चित्तकी शुद्धि होती है। मगर अक हद तक दिलकी.सफाी हो जानेके बाद साधकको भीतरी क्रियाका अवलोकन तो करना ही पड़ता है न ? साधकको कुछ समय शान्त होकर बैठने में बितानेकी जरूरत रहती है या नहीं? या सिफ कर्मसे ही मामला हल हो जाता है ? बुद्ध भगवानने प्रवृत्ति-निवृत्तिकी मिलावट अिसी कारण खोज निकाली। आपने कर्मयोगको ही राजमार्ग बताया है। मगर क्या सिर्फ अिसीसे मनुष्य आत्माकी क्रियाको समझ जाता है ?" बापूने लिखा- " यह कहना मुझे ठीक नहीं मालूम होता कि असा क्रम है कि मनुष्य कुछ समय निकम्मे विचार करनेमें बिताता है। अगर जिसमें अक भी अपवाद हो, तो यह नहीं कह सकते कि यह नियम है। और अपवाद तो हमें बहुतसे नजर आते हैं । अितना सही है कि अनगिनत लोग तरह तरहके मन्सूबे करते हैं, यानी वेकार विचार किया करते हैं । जैसा न हो तो अकाग्रता वगैरा पर जो जोर दिया जाता है, असकी जरूरत ही न हो । हमारे लिओ अभी जो चीज कामकी है, वह यह है : हम खुद तरह तरहके घोड़े दौड़ाते