, "स्वप्नके भौतिक कारण तो असंख्य हैं। मुझे औसा लगा है कि सपनेमें सपनेका मिथ्यात्व देखा जा सकता है । शायद यह जाग्रति और स्वप्नके बीचकी हालत होगी। स्वप्नदोष कितनी ही बार केवल यांत्रिक कारणोंसे बिना विकारके हो जाता. है । असे खानेमें फेरबदल करके रोका जा सकता है । ज्यादातर असका कारण कम्ज होता है। दूधसे स्वप्नदोष होता है जिसका कारण ज्यादातर विकार होता है, क्योंकि दूध विकारोत्तेजक है। मगर तुम पर यह बात लागू नहीं होती। यानी जिनके शरीर बहुत कमजोर हो गये हैं, अनमें दूध विकार पैदा कर नहीं सकता । भले ही फिर विकारी पुरुपने ही लिया हो । जिनके शरीर बहुत कम-- जोर हो गये हैं, अनमें दुधकी सारी शक्ति अन्हें पोषण देनेमें ही लग जाती है। डॉ० रजबअली कहते हैं कि अक हद तक यह सही है। जो शरीर और मनसे बिलकुल तन्दुरस्त हो, वह डॉ० रजबअलीके कयनसे बाहर है । " ज्ञानी पुरुषके स्वभावमें लोकसंग्रह जरूरी है । जिसमें अपवाद हो ही नहीं सकता। " में नहीं कह सकता कि मनको कितनी देर तक निर्विचार रख सकता हूँ, क्योंकि यह हिसाब कभी लगाकर देखा नहीं। लेकिन अितना जानता हूँ कि मेरे मनमें निकम्मे विचारोंको स्यान नहीं मिल सकता । आ जाय तो असे चोरकी तरह भागना पड़ता है। ." दंभ तो सिर्फ झूठकी पोशाक है।" अनेकको लिखा " सम्बन्धियोंके पत्रोंकी हमेशा आशा रखता हूँ। तुम मुझे अक भी पत्रसे वंचित न रखना । जैसे चातक मेहकी बाट देखता है, वैसे मैं तुम्हारे पत्रकी देख रहा था ।" मथुरादासको सिलाी यज्ञ पर लम्बा पत्र लिखा "सिलाी यशकी कल्पना गरीबोंको सिलाीका धन्धा दिलानेके लिअ नहीं है। मगर गरीबोंकी बुनी हुमी खादीको नुकसानके बिना जल्दीसे खपानेके लिओ है। महँगी लगनेवाली लादीको सस्ती करनेके लिअ है।" भोजनके बारेमें भी विस्तारसे लिखा और अन्तमें · व्रतोंके बारेमें लिखा: “विकारोंका .भी चिन्तन न करो अक बातका निश्चय करनेके बाद असे गड़हेमें पड़ी समझना चाहिये । व्रतका अर्थ ही यह है कि जिस चीनका व्रत लिया है, असके विषयमें हमें मन रोकनेका प्रयत्न नहीं करना पड़ता । जैसे व्यापारी किसी चीजका सौदा कर लेता है तो फिर असका विचार नहीं करता और दूसरी चीज पर ध्यान देता है, वैसी ही बात व्रतोंकी है।" .को लिखा "लोकमतका अर्थ है जिस समाजकी राय हमें चाहिये असका मत । यह मत नीति विरुद्ध न हो तब तक असका आदर करना हमारा " । -
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