जिसमेंसे फलितार्थ यह होता है कि हम मरकर कुटुम्बको जिलावे, कुटुम्ब मरकर देशको जिलावे, देश जगतको जिलावे । परन्तु बलिदान शुद्ध ही हो सकता है। अिसलिओ सब प्रारंभ आत्मशुद्धिसे होता है । आत्मशुद्धि होनेसे प्रतिक्षणके कर्तव्यका पता अपने आप मिल जाता है।" रक्षाबन्धन जेलमें पवित्र बहनोंकी राखी मिले तो सौभाग्य ही कहना चाहिये न ! मणिबहन पटेलको सवा बरसकी सजा हुभी सो १५-८-३२ तो ठीक ही है । मार अन्हें दिये गये हुक्ममें अहमदाबाद छोड़ने और अपने वतन करमसदमें जाकर रहनेके लिओ भी लिखा या! डॉक्टर साहबकी मृत्यु कैसे हालातमें हुी, जिसका हृदयद्रावक वर्णन करनेवाला छगनलाल मेहताका पत्र आया । असे पढ़कर फिर जी भर आया। जितनी झुम्रमें लकवे और प्रमेहकी बीमारीवाले डॉक्टर साहब रातको पढ़ते पढ़ते मेजका ' लैम्प झुठा कर पुस्तक हूँदने जाते हैं, लैम्प हाथसे गिर पड़ता है, सुनके पैरमें काँच चुभता है, वे चोटकी परवाह नहीं करते, लाखोंका दान करनेवाले अपने पैर पर आठ आनेका खर्च करनेमें भी संकोच करके तीन दिन तक चलते फिरते रहते हैं, अपने खेत वगैरा देखने जाते हैं, घाव जहरीला हो जाता है और अन्तमें पैर काटना पड़ता है और मृत्यु हो जाती है । ये सब बातें आठ दिनके भीतर हो जाती हैं, यह कैसा! छगनलाल बयान करते हैं कि आपरेशनके बाद और मरनेसे पहले सुनकी अँगुलियाँ माला जपा करती थीं । बापूने फिर डॉक्टरके गुणगान करने में कितना ही समय लगाया। डॉक्टरके बाद अनके जैसा हिन्दुस्तानका प्रतिनिधि बर्मामें कोभी नहीं रहा। जब तक वे थे तब तक हिन्दुस्तानसे किसी भी कोमका आदमी सुनके यहाँ जाकर खड़ा रहता और किसी भी संस्थाके लिअ रुपया मिल जाता था! आज बापूकी तबीयत कुछ बिगड़ गयी । लगातार तीन दिन तक आलू खानेका नतीजा यह हुआ कि कब्ज हो गया । आज खानेके बाद काफी के हुी । कैम्पके भाअियोंको पत्र लिखा रहे थे कि कै हो गयी । के होनेके बाद मुँह धोकर फिर पत्र लिखवाने लगे । वल्लभभाभी कहने लगे- रहने भी दीजिये ।" बापू बोले ---" नहीं जी, अब तो पेट हलका हो गया, अब कुछ है ही नहीं ।" राजाने आज ही लिखा था आपका पत्रव्यवहार बाहर जितना ही है। सिर्फ जितनी बात सच है कि अलग ढंगका है।" जेलियोंके पूछे. की प्रश्नोंके जवाबमें लिखवाया हुआ लम्बा पत्र अिसका प्रमाण है। ." अभी
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