बापूने कहा आज सुबह बाप्प पूछ रहे थे "क्या वल्लभभाीके अन्चारण सुधर रहे हे ?" मैंने कहा जरूर । अब अन्हें पता चल जाता है कि यह अच्चारण गलत है । सच तो यह है कि अन्हें अिस पड़ाीमें खुब १४-८-३२ रस आने लगा है। आज तक यह चीज जानी नहीं थी। अब यह नी ही हाथ लगी है। स्वर्गद्वारमपावृतम् जैसी भावना हो गयी है । अिसलिले विजलीकी तेजीसे प्रगति कर रहे हैं।" -"यही पाभीकी कुंजी है । संस्कृतके तो हमारे पुराने संस्कार हैं । सारा वातावरण अिससे भरा हुआ होनेके कारण असके अभ्यासके बारेमें तो असा लगता ही है । मगर किसी भी भाषाका सूक्ष्म अध्ययन करने लगे तो यही भावना होती है ।" अिसमें बापूका व्युत्पत्ति शास्त्रका शौक बोल रहा या। मगर बापूके शोककी कहाँ हद है ? लड़कियोंकी बीमारियाँ दूर करनेके लिभे शरीरविज्ञानका अध्ययन करनेकी अिच्छा हुी और अस दिन मेजर मेहतासे जैसी किताबकी माँग कर रहे थे, जो अनिष्णात यानी मामूली आदमियों के काम आये और जिसमें रोगोंके मिलाजका भी निरूपण हो । आभमकी डाकमें ढेरों पत्र लिखे । छानलाल जोशीको- ." आश्रमकी मजदूरीके पीछे स्वतन्त्रताकी मान्यता है, दुसरी मजदुरीके पीछे पराधीनताकी भावना है । असलमें तो हमारे लिये दोनोंमें स्वतन्त्रता है । जो खुद हो कर दुःख अपने सिर लें, अनके मनमें भी दुःखकी शिकायत नहीं होती । अलेटे वह दुःख सुख-जैसा लगना चाहिये । अवलते तेलके कड़ाहमें सुधन्वा कैसे नहाये होंगे ! प्रह्लादने जलते हुओ लाल लोहेके खंभेका आलिंगन कैसे किया होगा ? जिन्हें बनावटी किस्से न मानना, क्योंकि असा आज भी हो सकता है । रिडली, लेटिमर, और मंसूरके सुदाहरण तो ॲतिहासिक हैं। दूसरे तुम खुद याद कर सकते हो । सारी बात मन पर दार मदार रखती है।" को: . " It won't do for any one to say I am only what I am. That is a cry of despair. A seeker of truth will say, 'I will be what I ought to be.' My appeal is for you to come out of your shell and see yourself in every face about you. How can you be lonely in the midst of so much life ? All our philosophy is vain, if it does not enable us to rejoice in the company.of fellow beings and their service." "कोी यह कहे कि मैं जैसा हूँ वैसा ही हूँ, तो जिससे काम नहीं चलेगा । यह तो निराशाकी बात हुभी । सत्यका पुजारी यह कहेगा कि मुझे
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