आप अक ही साथ ठंडी और गरम दोनों फूंक नहीं मार सकते । आपके वे मित्र हों, तो आपको अन्हें पहले ही लिखना था । या मुझसे पूछ कर लिल सकते थे। मित्र न हों तो आप सीधा सरकारको लिख देते और वह बात छोड़ देते । मगर आपने तो जाल रचा । जानमझ कर नहीं । मगर जिसका नतीजा वही होता । मैं आपसे कहे देता हूँ कि यह ढंग खतरनाक है।" "मुझे अफसोस है, मेरा असा कोमी अिरादा नहीं या ।" कह कर चले गये। मगर बहुत झेपे हुओ दिखामी दिये । आभमकी डाकमें लड़कियों के मासिक रोग और झुस बारेके अज्ञान और छिपानेकी आदतसे पैदा होनेवाली बीमारियोंका हाल पढ़कर बापूको बहुत विचार आये और लम्बे पत्र लिखे । आनन्दीको लम्बा पत्र लिखा और असे सब लड़कियोंसे पढ़वानेके लिओ और प्रेमाबहनसे 'अस सम्बन्धमें चर्चा कर लेनेके लिभे लिखा । अमतुलको असा ही लिखा । प्रेमाबहंनके नाम लम्बा पत्र लिखा । व्यक्तिपूजा और गुणवनाके बारेमें "तुम नारदमुनिका अदाहरण तो देती हो, परन्तु अनके वचनोंका रहस्य कहाँ “जानती हो? अनके जैसी व्यक्ति पूजा जरूर करो । वह करने लायक है । जैसे अतिहासिक वैकुण्ठके भगवान वैसे ही अनके कृष्ण ! नारदमुनिके भगवान सुनके कल्पना मन्दिर में विराजमान थे। वे नारदमुनि तो आज भी हैं और अनके कृष्ण भी हैं, क्योंकि वे दोनों हमारी कल्पनामें ही रहे हैं। मेरे खयालसे अितिहासकी अपेक्षा कल्पना बहकर है । रामसे नामका दर्जा चा है, तुलसीदासने जो यह कहा है उसका अर्थ यही हो सकता है । तुम व्यक्तिपूजाके चक्करमें पड़ी हो भिसीसे. मुझे चिन्तामें डालती हो न ! आश्रमके बारेमें तुम मुझे बेफिक्त नहीं कर सकतीं । नारणदास कर सके हैं। जैसे और भी नमूने बता सकता हूँ । वे भी व्यक्तिपूजक तो हैं ही। कौन नहीं है ? मगर अन्तमें वे व्यक्तिको पार करके असके गुणों या असके कार्यके पुजारी बन जाते हैं । यह अमूल्य वस्तु भूलकर हमने अपनी मूढ़तामें स्त्रियोंको सती होना सिखाया । यह व्यक्तिपूजाकी पराकाष्ठा है ! वैसे पत्नीका धर्म तो यह है कि खुद पतिका काम अपनेमें अमर करे । पतिपत्नीमेंसे विकार और नर-मादाका विचार निकल जाय, तो यह आदर्श सारे संसारके लिखे हर हालतमें लागू पड़ता है । यानी यह प्रेम जाकर भगवानमें मिलता है । परन्तु अब अिस विषयको छोड़ देता हूँ। " मेरे विरोधी पहले भी थे और अब भी हैं। फिर भी मुझे अन पर गुस्सा नहीं आया । सपनेमें भी मैंने सुनका बुरा नहीं चाहा । फल यह हुआ कि बहुससे विरोधी मित्र बन गये हैं । मेरे खिलाफ किसीका विरोध आज तक ३५३ म-२३
पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३७२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।