साबरमतीका बरताव दिन दिन अिस तरहका होता रहा है। जिससे बा झूची झुठी है । पहलेका डर अभी तक पूरी तरह नहीं मिटा होगा। मगर बहुत कुछ मिट गया है । मनमें भी वा पर गुस्सा आता है, तो अपने पर निकाल लेता हूँ। गुस्सेकी जड़ मोह है । मुझमें जो यह तब्दीली हुी है वह महत्वपूर्ण है और असका नतीजा बहुत अच्छा निकला है। मेरा प्रेम और भी निर्मल होता जायगा, तो ही परिणाम और भी सुन्दर होगा। असंख्य स्त्रियाँ सहज ही मेरा विश्वास करती हैं। मुझे विश्वास है कि असका कारण मेरा प्रेम और आदर है । ये गुण अदृश्य रूपमें काम करते ही रहते हैं।" बेलवीका पत्र अनकी साफदिलीकी, अज्ज्वल देशभक्तिकी और लल्लूभाीके परिवारके प्रति झुनकी निष्ठाकी निशानी है । वैकुण्ठके साथ अपनी दोस्तीको वे जिन्दगीमें हुआ अक अनुपम सौभाग्य बताते हैं । अक हिन्दू कुटुम्ब सच्ची अदारतासे रहकर क्या कुछ कर सकता है, यह ब्रेलवीके पत्रसे देखा जा सकता है । सारा पत्र संग्रह करके रखने लायक है। सुपरिटेण्डप्टकी आते ही What's the news ? (क्या खबर है ?) पृछनेकी आदत है । आज बापूने झुसका असा जवाब दिया १२-८-३२ कि वह सुट्ट हो गया : खबर आपके पास हो या हमारे पास ? आपने तो मेरे लिखे जाल बिछाया था और मैं भूलचूकमें फँस गया होता, तो मारा ही गया था न? आपको २० तारीखको अन्सारीने पत्र लिखा था और भुसका जिक्र न करके आपने मुझसे पूछा कि वे आवे तो क्या आप अनसे मिलेंगे ? अिसका जवाब अगर मैं यह दे दूं कि मैं नहीं मिलगा, तो आप सरकारको लिख दें कि यह नहीं मिलेंगे। अिस पर सरकार अन्सारीको जवाब दे दे कि गांधो किसीसे मिलने नहीं । यह तो ठीक हुआ कि मैंने असावधान जवाब नहीं दिया, नहीं तो आपने तो मुझे फंदेमें फँसाया ही था न?" वह "नहीं, मैंने जैसा चाहा ही नहीं था । अन्सारी तो मेरे मित्र हैं । मैं अन्हें लिखता कि गांधीजी नहीं मिलते, तो सरकारको आपके लिखनेकी कोमी जरूरत नहीं होती । नाहक जिनकार क्यों कराया जाय १" बापू - "अिनकार करने में कुछ अर्थ है | और आप पत्र आया तब मुझसे चर्चा करके निर्णय कर सकते थे । मगर आपने तो पत्र आया कि सरकारको भेज दिया और फिर मुझसे पूछने आये । झुम वक्त भी आपने यह नहीं कहा कि पत्र आया है विपुल पूछा। "नहीं, नहीं, में सरकारको न लिखता मगर अन्सारीको लिखता।" " अन्सारीको तो आपको पहले ही लिखना या । बोला:
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