आज सब जेलियोंके ही पत्र आये । रामदास, मोहनलाल भट, सैयद अब्दुल्ला ब्रेलवी, खुरशेद और मुहम्मद आलमका । सभी पत्र ११-८-३२ महत्वके थे। रामदासने नीतिके प्रश्न अठाये थे। और बापूसे पूछा था कि आप अक समय बहुत सस्त थे और भारी प्रायश्चित्त करते और कराते थे। अब जरूरतसे ज्यादा अदार कैसे बन गये हैं ? अिस अदारताका लोग बेजा फायदा भी झुठाते हैं। खुद अन्होंने दालचीनी, लौंग और अिलायचीके किस्सोंके बाद दालचीनी और लौंग न खानेका व्रत लिया दिखता है । अिसलिओ निम्र वहनने दूध घी खाना छोड़ दिया । बापूने आज ही रामदासको लम्बा पत्र लिखा : " मेरी समझ तो यह है कि तुमने अभी तक दालचीनी, लौंग छोड़नेका निश्चय नहीं किया है । मैं निमको लिखनेकी सोच रहा हूँ। अगर वह व्रत ले ही बैठी होगी, तब तो अससे छुड़वानेका आग्रह नहीं करूंगा। सिर्फ धर्म समझा दूंगा। मैं मानता हूँ कि जैसे धर्म छुड़वानेका आग्रह नहीं करना चाहिये । असा आग्रह करके अिन्सान अपनी मनवृती छोड़ देता है और दिलमें कमजोरी आ जाती है। जैसा तुम लिखते हो, पहले मैंने जो सख्ती की थी, असका मुझे पछतावा नहीं है । अस वक्तके लिअ वह ठीक थी। आज मेरी जरा सी सख्ती हिमालय जैसी भारी मालूम होती है। जो काम आज मैं सिर्फ अलाहनेसे ले सकता हूँ, असके लिओ मुझे पहले खुद अपवास करना पड़ते और दूसरोंको भी हैसियतके अनुसार वैसा ही करना पड़ता था। जैसा पहले करता था वैसा ही अब भी करूँ, तो मैं निर्दय साबित होगा। तो क्या मैं बढ़ा असी तरह दूसरे भी बढ़े हैं ? असा होनेका कोी कारण नहीं है । मगर जिनका मुझसे सम्बन्ध है, अन पर मेग असर रहता ही है । अिसलिमे ज्यादा करनेकी जहरत नहीं रहती । यानी तेरे लिओ निम्रसे अलग कष्ट सहन कराने या करनेकी जरूरत नहीं है । क्योंकि मैं बड़ा चौकीदार बैठा हूँ | मेरा शरीर न रहे तब तुम सबको खुब सावधान रहना पड़ेगा । सच्ची हालत यह है । जिसीलिओ अक्सर मेरी गैरमौजूदगीमें ढिलाभी आ जाती है। दुनियाका कानून ही असा है । अिसलिझे हमें शिक्षा यह लेनी है कि हमें अपनी जाग्रति पूरी साध लेनी चाहिये । आज भले ही बेलकी तरह पेड़के सहारे चढ़े हों, मगर यह परतन्त्रता है । अससे छूटकर अपने आप सीधे खड़े रहना सीख लेना चाहिये । निमू पर विजली वेगसे जो असर हुआ, झुसका कारण जो मैंने अपर बताया है वही है । तुझे जो याद है वह काल मेरा अमा नहीं था। क्योंकि आसपासका वातावरण भैसा अत्तरदायी नहीं था । अितना धैंचा नहीं हुआ था। मैं निमूको कुछ ३५० . । -
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