पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३६३

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- 66 वलिके अनुसार मिले हुओ कैदीके अधिकारके अनुसार ब्राह्मणका भोजन माँगते हैं। नियमावलिमें यह लिखा है कि किसीको अपनी जापपाँत छोड़नेकी जरूरत नहीं है। ब्राह्मणको या तो ब्राह्मणकी बनाी हुी रसोी मिलेगी या असे बनाने दिया जायगा । बीजापुरमें मुनशीने अन्हें कहा था कि अिस नियमके अनुसार कैदीको यह हक है। दोनों सत्याग्रहियोंमेंसे अक तो चौथी बार जेलमें आया है । पहले असने अब्राह्मणका बनाया हुआ खाया है । मगर कहता है कि मेरा भाजी मर गया । असे मैंने वचन दिया था कि मैं सब आचार पालन करूँगा और ब्राह्मणोंका बनाया खाशृंगा। दूसरे सत्यापही लड़केने तो यहाँ जेलमें आकर भी ब्राह्मणेतरका बनाया हुआ खाया है । मगर अब असके साथ हो गया है । अिस सत्याग्रहीका कहना यह था कि सत्याग्रहमें शरीक हुओ अिससे कैदीका हक भी खो दें ? बापूने अिन लोगोंको समझाया कि जैसी हठ नहीं की जा सकती। जेलमें आकर असा झगड़ा किस लिओ ? वगैरा । मगर जब अन्होंने सरकारी नियमके अनुसार अधिकारकी बात कही, तब बापू कहने लगे. अच्छा तो मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूँगा, मगर अिस शर्त पर कि मुझे यह विश्वास हो जाय कि असा नियम है । अगर असा नियम न होगा, तो तुम्हें मेरा कहना मानना पड़ेगा । या तो तुम्हें जेलके नियम मानने होंगे या सत्याग्रहकी नियमावलिको मानना होगा ।" अन्होंने आखिरमें वचन दिया कि आपको विश्वास हो जाय कि असा नियम नहीं है और सुपरिण्टेण्डेण्टको ब्राह्मणका भोजन देनेका पूरा अधिकार नहीं है, तो हम अपवास छोड़ देंगे।" जिसके बाद बापूने जेलके नियम देखनेको माँगे । डॉ० मेहता कहने लगे " असा सऍलर है कि किसी कैदीको नियम दिये ही नहीं जा सकते ।" तब बापूने कहा " अिसके लिओ मुझे लड़ना पड़ेगा ।" शामको भंडारी बापूसे मिलने आये। यह मुलाकात बड़ी अल्लेखनीय थी । भंडारीके चेहरे पर विषाद था । भीतर ही भीतर चिढ़ भी थी कि यह सब क्या हो रहा है और मुझे कहाँ तक झुकना पड़ रहा है ? " अिन लोगोंने पहले अब्राह्मणोंका भोजन खाया है तो अब क्यों न खायें ? मेरा यही कहना है । अिसलि जिसमें शुद्ध भावसे लड़नेकी बात ही नहीं रह जाती । " बापूने कुछ भी हो, अन्हें आज ब्राह्मणकी तरह रहनेकी अिच्छा हो और नियमके तौर पर आप अन्हें दे सकते हैं, तो देना आपका धर्म है ।" वे बोले - " नहीं, मुझे देनेका अधिकार नहीं । मुझे आी. जी. पी. से पुछवाना होगा । असकी मंजूरीके बिना हरगिज नहीं दिया जा सकता । " बापूने कहा- "मगर अिन युवकोंका कहना है कि नियमके अनुर आपको ही अधिकार है।" वल्लभमाअीने भी कहा " अधिकार है क्योंकि मैंने जिस तरह ब्राह्मणका भोजन देते देखा है।" अब नियमावलि देखनेके कैदियोंके अधिकारकी चर्चा ३४४ कहा 1 ।