पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३५५

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जीवनमें क्या इस मारनेको पड़े थे? सार्वजनिक जीवनमें पड़नेवाला हट ही कैसे सकता है ? वायू " अिसमें अनका क्या दोष ? वे बेचारे काम कर रहे थे, मगर अनके दुमाग्यसे में आ पहुंचा और उनकी वाजी हायसे जाती रही । अन्हें मेरे काममें श्रद्धा नहीं हो और वे हट जाय तो अिसमें क्या आश्चर्य है ?" वल्लभभाभी "अच्छा तो लिखिये। आप तो 'सत्यमपि प्रियं वदेत्' वाले हैं न!" बापू " महादेव, यह वाक्य अिनकी पढ़ाीमें आ गया है क्या ?" " हाँ बाप, अब कलसे तो गीताप्रवेश होगा और ये गीता पढ़ लेंगे तब तो आपके सामने जैसे अजीब अजीब अर्थ रखेंगे कि आपको असा लगेगा कि यह तो आफत हो गयी!" सोते समय ही मैंने पूछा गीता शुरू करेंगे न " जिस पर खूब कहा : 'आदौ वा यदि वा पश्चात् वा वेदं कर्म मारिष' । अस दिन में सुपरिण्टेण्डेण्टकी कुछ आलोचना कर रहा था। अिस पर मुझसे कहने लगे : नैतत्वय्युपपद्यते ! और थैक्सके लिो बार बार कृतार्थोऽहं कहते हैं ! " तो कल । बापू- पोंकि बारेमें सरकारका जवाब आ गया है, यह खवर अनायास ही लग गयी । बापूने यहाँसे डाकमें गये हुओ पत्रोंके बारेमें पूछा। ३-८-२३२ सुपरिटेण्डेण्टने कहा “पत्रोंकी चिन्ता न कीजिये।" वापू कहने क्या भेज दिये हैं ?"वे बोले. "हाँ"बापू- " आपको भेजनेकी छूट मिली है ?" वे- "हाँ" "कसे ?" " शनिवारको हुक्म मिला था, अिसलिझे आश्रमकी डाक भी गयी 1" अितना बतानेके पाद खुद ही बोले --- " अिस बारेमें मैंने लिखा था। असका परिणाम मालूम होता है !" यापने कहा "अरे भाभी, दस दिन हुअ मैंने जो पत्र लिखा था असे आप भूल गये १५ मिस पर वे बोले. "यह पत्र तो आपने दो तीन दिन पहले लिखा या न?" बापू कहने लगे अिस वारेमें हमने चर्चा की थी; आपने असमें संशोधन कराया था । सरकारने अमका जवाब देनेके बजाय यह हुक्म जारी किया दीखता है।" वे कुछ बोले नहीं । लेकिन यह देखकर हम सबको बड़ा आश्चर्य हुआ कि जिस आदीमें यह पत्र लिसने देनेका स्वाभिमान भी नहीं था, वह आदमी आज मरकारकी हार हुी झुमका श्रेय खुद लेना चाहता है । यापूका अहसान मान मकता या, मो तो माने ही काहे को? " अरे,