हैं । तुम्हारी कलमसे भैसी बात निकलनी ही न चाहिये । यानी भिस तरहका विचार तक न आना चाहिये । विचार आ गया तो अच्छा किया कि मेरे सामने रख दिया । रखा तो मैं सुधार सकता हूँ। ये वाक्य मैंने अिसलि नहीं लिखे हैं कि तुम मुझसे अपने विचार छिगाओ। तुम जैसी भी-पागल, अद्धत, नम्र -हो, मैं वैसी ही देखना चाहता हूँ। मगर मेरी माँग यह है कि अपरोक्त विचार तक तुम अपने मनमें न आने दो।" माल्यसका 'जीवो जीवस्य जीवनम् ' के नियमके बारेमें अिसी पत्रमें लिखा: असका लिखना कुछ तो लोग नहीं समझे और कुछ भूल भरा है । जो कानुन मनुष्येतर प्राणियों पर लागू होता है, वह मनुष्य पर लागू नहीं होता । मनुष्येतर प्राणी दूसरे जीवोंको मार कर और खाकर गुजर करता है । मनुष्य जिससे बचने की कोशिश करता है । जिसीमें असकी अहिंसा है । जब तक शरीर है, तब तक वह पूर्ण अहिंसाको नहीं पहुँच सकता। मगर भावनाके स्वपमें पहुँच जाय तो कमसे कम अहिंसासे काम चला लेता है । खुद मर कर दूसरोंको जीने देनेकी तैयारीमें मनुष्यकी विशेषता है । जैसे मनुष्य बहता है, वैसे ही खुराक भी बढ़ती है । अभी असमें बढ़नेकी शक्ति है । डार्विनकी खोजके बाद तो बहुत नी खोज हो चुकी है । 'अधिकसे अधिक संख्याका भला' या 'जिसकी लाठी भुसकी भैंस' वाला कानुन गलत है। अहिंसा सबका भला सोचती है । औश्वरके यहाँ सबके भलेका ही न्याय होगा । यह तलाश करना हमारा काम है कि वह न्याय किस तरह किया जाय और अस न्यायमें मनुष्यका क्या कर्तव्य है । अिस नीतिके विरुद्ध नीति पेश करना मनुष्यका काम हरगिज नहीं है।" आज 'टाअिम्स आफ भिंडिया में बड़े बड़े अक्षरोंमें मेरी जमीनका लगान चुकाये जानेका समाचार पढ़ा : महादेवके चचाके लड़के १-८-३२ मगन बापने असिस्टैण्ट कलक्टरको अद्धत जवाब दिया और लगान जमा करानेसे अिनकार कर दिया। फिर थानेदार गया । असने सुनके घरमेंसे कांग्रेस पत्रिकायें पकड़ी और लड़ाीमें भाग लेनेके कारण मुकदमा चलाया । वहाँ असने माफी मांगी और रुपया जमा करा दिया। 'टाअिम्स की खबर है, अिसलि राम जाने कहाँ तक सच है। मगर यह तो सच ही है कि लगान चुका दिया । मुझे खुब रंज हुआ । मगर क्या किया जाय ? मुझसे हो सका भुतना आज तक किया । मगर जेलमें बैठे बैठे क्या दुश्मनके दाव काटे जा सकते हैं?
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