ने पूछा सेवा ही है । हम खुद दिनदिन शुद्ध होते जाय, अक भी गन्दा विचार मनमें न आने दें, तो यह भी मेरे खयालसे सेवा ही है । और अितना तो विस्तरमें पड़ा हुआ आदमी भी कर सकता है।" "जो सांसारिक चीजोंके पानेके लिओ झूठका सहारा लेता है, असे भगवान मिल सकते हैं ? या सत्यके पालनेके लिओ प्रवृत्ति छोड़ दे असे ीश्वर मिलते हैं ?" अन्हें हिन्दीमें लिखा : “जो मनुष्य सांसारिक वस्तुकी प्राप्तिके लिअ या और किसी कारण असत्यका सहारा लेता है, राग- द्वेषसे भरा है, असको भगवत्प्राप्ति हो ही नहीं सकती है । और दूसरा दृष्टान्त जो आपने दिया है असे मैं असम्भव मानता हूँ | सत्यके मार्ग पर चलना और प्रपंच अर्थात् प्रवृत्तिसे अलग रहना आकाशपुष्प जैसी बात हुी। जो प्रवृत्तिसे अलग रहता है वह किस मार्ग पर चलता है वह कैसे कहा जाय ? सत्यके मार्ग पर चलनेमें ही प्रवृत्तिप्रवेश आ जाता है । बगैर प्रवृत्तिप्रवेशके सत्यके मार्ग पर चलने न चलनेका कोभी मौका ही नहीं रहता। गोतामाताने की श्लोकोंसे स्पष्ट किया है कि मनुष्य बगैर प्रवृत्ति अक क्षणके लिओ भी रह नहीं सकता है । भक्त और अभक्तमें भेद यह है कि अक पारमार्थिक दृष्टिसे प्रवृत्तिमें रहता है और प्रवृत्तिमें रहते हुओ सत्यको कभी छोड़ता नहीं है । और रागद्वेषादिको क्षीण करता है । दूसरा अपने भोगोंके ही लिओ प्रवृत्तिमें मस्त रहता है, और अपना कार्य सिद्ध करनेके लिो असत्यादि आसुरी चेष्टासे अलग रहनेकी कोशिश तक भी नहीं करता है । यह प्रपंच कोअी निन्द्य वस्तु नहीं है । प्रपंचके ही मारफत भगवद् दर्शन शक्य है। मोहजनक प्रपंच निंद्य और सर्वथा त्याज्य है। यह मेरा दृढ़ अभिप्राय है । और अनुभव है ।" सोनी रामजीको ." जनेअके गूढ़ अर्थ मैंने बहुत सुने हैं मगर ये सब अर्थ काल्पनिक हैं । जनेशूकी झुत्पत्तिके समय ये सब भाव भरे थे, यह मैं नहीं मानता । मगर आर्य और अनार्यमें भेद है, यह बतानेके लिो जो अपनेको आर्य मानते थे अन्होंने जनेशूकी निशानी अख्तियार की। वह समय जैसा होना चाहिये, जब रूअीसे कपड़ा बनानेकी क्रियाकी खोज हुी होगी। अस प्राचीन- कालमें क्या और आज क्या, करोड़ों लोग सिर्फ धोती पहनते थे और नंगे बदन रहते थे । जो अनार्य माने जाते हैं वे तो असे थे ही । अिसलिओ आर्योने सूत कातनेकी क्रियाको गति देनेके लि, कताभीको बढ़िया बनानेके लिओ, और यह साबित करनेके लिअ कि यह पवित्र अद्योग है जनेयू रूपी चिन्द आयोंके लिओ ग्रहण किया । मिस कयनके लिओ मेरे पास कोजी तिहासिक प्रमाण नहीं है । सिर्फ मेरा अनुमान है । आज तो आर्य-अनार्यमें कोनी फर्क न है और न रहना चाहिये। दोनों जातियोंका संकर हजारों वर्ष , ३१८
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