1: than one sees anywhere else ---- Stretching their venerable arms to heaven, and joining in the morning hymn of praise with the rustling of their myriad leaves. All thoughts of self was swept away and one rejoiced and felt one's being throb in oneness with the whole of nature. कल सवेरे गंगाजीके किनारे धूमते वक्त दिव्य आनन्द अनुभव किया । तीर्थोकी पवित्रता और दिव्यताके खिलाफ लोग कितना ही बोलते हो, मगर . आँखें खोलकर वहाँ घूमनेवालोंको तो यह खयाल जरूर आता है । गंगाजीका नीला, चमकता पानी; सफेद रेतवाले मखमल-जैसे किनारेको छुनेवाली, मीठी घण्टियों जैसी आवाजें करनेवाली और अगते हुओ सूर्यकी किरणोंकी सुनहरी छायासे चमकने वाली असकी छोटी छोटी लहरें; सूपर दौड़ती हुी छोटी छोटी बदलियोंसे शोभित नीलरंगका आकाशः खेतों परसे बहकर आनेवाली और शरीरका सुखद स्पर्श करनेवाली हवाके झोंके; आकाशकी तरफ अपने हाय फैलाकर खड़े हुओ और अपने असंख्य पत्तोंकी सरसराहटसे सुबहकी प्रार्थनामें शरीक होनेवाले शानदार पेड़ - यह सब देखकर मनुष्य अपने आपको भूल जाता है और सारी कुदरतके साथ सेकताकी तानमें असका हृदय अछलने लगता है।" ये तो फिर कवि और चित्रकार भी तो हैं न!
. काझुण्ट कैसरलिंगके सफरकी डायरी पूरी कर दी । बहुत ही अजीब आदमी है । मुझे लगता है कि वह जैसा होगा, जैसा कोसी आदमी बेफिक्र होकर बैठा बैठा निश्चिन्त विचार किया करता है । असने हर चीजमेंसे अच्छी ही बात निकालनेका व्रत लिया हो तो दूसरी बात है। मगर हर चीजको असकी परिस्थितिके योग्य बनानेके लिओ असका बचाव करनेका जो भार लिया है, वह बेहूदा लगता है । जैसे, हिन्दूधर्मके अछूतपनका बचाव; चीनियोंके सबकुछ खाने और जुओका बचाव ही नहीं, बल्कि असमें सुन्दरताका आरोपण भी करना; और अिसी तरह जापानकी वेश्या-सहिष्णुताका बयान ! कहता है कि पवित्रताकी बुतपरस्ती क्यों करनी चाहिये ? अपने भाीको देशके लिओ लड़नेको भेजनेकी खातिर बहन अपनी पवित्रताको बेच दे तो अिसमें क्या बुरामी है ? अितना होने पर भी अिस आदमीके कितने ही समझदारी भरे विचार हैं, कितना ही दीर्घ अवलोकन है और कितना ही सूक्ष्म निरीक्षण भी है । असकी योगीकी व्याख्या बढ़िया है : "A mystic is a contemplative man, whose life emanates from within, who lives in the essence of things and for that essence alone, whose consciousness has taken root in २९६