पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३०६

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. . . हाँ, शर्त यह है कि जिस सारे ज्ञानका झुपयोग वह समाजके लिये करे । के लिअ चाहे जितना ही खर्च करनेका जो विचार किया था, वह अिसी दृष्टि से किया या । कारण मैंने देखा कि असमें यंत्रशास्त्रकी प्रतिभा है। वैसे, पुस्तकें पढ़ा पहार बुद्धिको भर देनेका हमारा ध्येय नहीं है । हमारे यहाँ तो माँवाप बच्चोंक लिओ जियेंगे, बच्चोंसे सीखेंगे और बच्चोंको सिखायेंगे । सारा जीवन पाठशाला और शिक्षण रूप बन जाना चाहिये । "अभी तक हम बहुत कुछ नहीं साध सके हैं, क्योंकि हमारी सुम्र ही कितनी है ? सोलह वर्ष । असमेंसे भी बारह वर्ष तो लड़ने में ही चले गये। । जिस तरह लड़ते लड़ते हम अनुभवी बन जाय तो कुछ बुरा नहीं । सन् ३० में आश्रमको होम कर शुरूआत की, यह हमारे — विकासका अक क्रम कहा जायगा । " बापू कहने लगे. मेजरसे आज घी मँगाया तो मालूम हुआ कि पिछली बार अन्होंने अच्छा घी हमारे लिखे खरीदकर नहीं मँगवाया था, बल्कि अपने १२-७-३२ घरसे भेजा था । पत्रोंके बारेमें पूछा तो बोले- ." कैम्प मेल और स्त्रियोंकी जेलमें भेजनेके पत्र भी सरकारको देखनेके लिओ मेनने पड़ेंगे।" बापू बोले--- "तो मुझे नहीं भेजना है और जिस मामलेमें लड़ लेना पड़ेगा।" बेचारे मेजर भिसके बाद राजनीतिक हालतके बारेमें पूछने लगे। " सेम्युअल होरने यह मान लिया हो कि नरम दलवालोंमें जरा भी स्वाभिमानकी भावना नहीं रही है, तभी वह असे प्रस्ताव करेगा । असलमें तो गोलमेज परिषदमें भी सलाह मशविरे जैसी कोी बात नहीं थी। मैंने यह देखा कि सरकारी सदस्य ही मन चाहा करते थे। फिर भी यह योजना असी थी, जिससे अनके मनको कुछ सन्तोष हो सकता था। अिस योजनामें तो जिस तरह मनको समझानेकी भी कोभी बात नहीं। अिसलि ये लोग अिसे न माने तो क्या करें?" वल्लभभाीने पूछा- अब नरम दलवाले क्या करेंगे?" -" झुनकी स्थिति कठिन है। कांग्रेसके साथ मिल नहीं सकते, और यह रवैया कब तक जारी रख सकेंगे ?" वल्लभभाभी --" आप अिन्हें जानते हैं, अिसलि पूछता हूँ।" बापू जानता हूँ, अिसीलिमे सुनकी मुश्किल बताता हूँ।" जूनके 'मॉडर्न रिव्यू में प्रकाशित 'बंगालके हिन्दुओंका औलान' नामक- .' मुसलमान की आलोचनाका रामानन्द चटर्जीने जो बढ़िया जवाब, २८३ बापू कहने लगे. लेख पर