. तुम्हारी किनारीवाली कतरनें आधी सुखड़ गयी थीं, अिसलिझे बहुत खराब लगती थीं। अपयोग तो कुछ भी नहीं था अस पर खर्च किया हुआ परिश्रम और समय बेकार गया । अिसी तरह अतना कागज खराब हुआ और अतना बनताका नुकसान हुआ। दो सार निकालो : समझे बिना किसीकी नकल न करो । शृंगारकी खातिर किया हुआ शृंगार शृंगार नहीं है। युरोपमें जो बड़े देवालय हैं अनके लिअ कहा जाता है कि झुनकी सारी सजावटके पीछे झुपयोग जरूर होता है । यह सही हो या न हो, मैंने जो नियम बताये हैं सुनके बारेमें शंकाकी गुंजायश नहीं है।" अिसी पत्रका दूसरा अद्धरण : " सच झुठ तो भगवान जाने, मगर जैसा कहा जाता है कि मैं मनुष्योंसे बहुत ज्यादा काम ले सकता हूँ। यह सच हो तो झुसका कारण यह है कि मुझे उनके प्रति चोरीका शक होता ही नहीं । जितना देते हैं अससे सन्तोष कर लेता हूँ। कितने ही यह कहनेवाले भी हैं कि मुझे लोग जितना धोखा देते हैं अतना शायद ही किसीको देते होंगे। यह परीक्षा सही निकले तो भी मुझे पछतावा नहीं होगा। मुझे अितना-सा प्रमाणपत्र मिले कि मैं दुनियामें किसीको धोखा नहीं देता, तो मेरे लिओ काफी है । वह दूसरा कोभी न दे तो मैं अपने आपको तो देता ही हूँ। मुझे झूठ सबसे बुरी लगती है। ज्यादासे ज्यादा लोगोंका ज्यादासे ज्यादा भला' और 'जिसकी लाठी असकी भैसके नियमोंको मैं नहीं मानता । सबका भला-सर्वोदय- और कमजोरका पहले, यह अिन्सानके लिओ अच्छा कायदा है। हम दो पैरोंवाले मनुष्य कहलाते हैं, मगर चौपाये पशुओंका स्वभाव अभी तक नहीं छोड़ सके हैं। अिसे छोड़नेमें धर्म है।"
नारणदासके पत्रमेंसे : “ओक ही चीज सच्चे आदमीके लिो काफी है। मृतेसे बाहरका काम अपने पर नहीं लेना चाहिये । और वृतेसे भीतर रहनेका लोम कभी करना नहीं चाहिये । जो शक्तिसे अधिक करने लगता है वह अभिमानी है, आसक्त है । जो शक्तिसे कम करता है वह चोरी करता है। समय पत्रक रखकर हम अनजाने भी अिस दोषसे बच सकते हैं। बच जाते है, यह नहीं कहता, क्योंकि अगर समय पत्रक ज्ञान और अल्लासपूर्वक न रग्ब सकें तो अससे पूरा फायदा नहीं झुठा सकते ।" अिस वार विद्याध्ययन पर लिखा । सुझमें साहित्यका अध्ययन, सत्यदर्शनके लिये अध्ययन और आत्मदर्शनके लिये अध्ययन -ये भेद करके पताया कि हमें पिछले दो अध्ययनों पर ही ध्यान देना चाहिये और आश्रममें - २७८