छपता था । यह सारा घाटेका धन्धा था। हर महीने ५०-६० पौण्ड बापूको डाल देने पड़ते थे और मुश्किलसे चार सौ प्रतियाँ खपती थीं। बापूने छगनलालको जाँचके लि भेजा। पर मदनजीतने अन्हें हाय न घरने दिया। बादमें वे वेस्ट गये । अन्होंने रिपोर्ट दी कि यह तो दिवाला निकालनेका धन्धा है, अिसे समेट लीजिये । बाके असे फिनिक्स ले जानेका निश्चय करनेके साथ ही ये भाभी हिन्दुस्तान चल दिये । गोखलेके नाम पत्र ले गये थे। बाकी निन्दा बर्मामें भी खुब की । मगर अनका तारीफके लायक गुण यह था कि अन्होंने अपने लिये कोही भी जमा नहीं को; अनेक खटपटोंमें भाग लेते हुझे भी सुनमें अपना स्वार्थ नहीं चाहा । खटपट, दूसरोंके बारेमें वहम कर लेना, दूसरोंके दोष ही पहले देखना, अिस तरहके दुर्गुण अनमें थे। मगर समाजके लिभे अन्होंने जो फकीरी ली थी वह सच्ची थी। रंगूनमें भी उन्होंने स्वार्थके लिये कुछ नहीं किया । और जिसमें शक नहीं कि अन्होंने राष्ट्रकी सेवाके लिझे ही जीवन विताया । अनके जीवनका जेलमें अन्त करके मीस्वरने अनकी बड़ी कदर की । आज डाह्याभाभी मिलने आये थे। सुबह बापू जोशी, नरसिंहभाभी और हरिदाससे मिळे । डाह्याभाभी कहते थे कि सरोजिनी देवीसे वायसराय मिले थे। सरोजिनीने कहा, कि 'अच्छा हुआ कि यह सच्ची बात प्रगट हो गयी । वहाँ जाकर क्या स्वराज्य मिलना था ?' यह सुनकर भारी आश्चर्य हुआ कि केटेलीने जमनालालजीको दबानेकी खूब कोशिश की ।
हर सप्ताह आश्रमकी डाक जिस मोटे लिफाफेमें आती है, असपर यहाँ पार्सलों वगैरापर आये हुआ ग्राजुन पेपर चिपका कर नये लिफाफे बनाये जाते हैं। मैं कहता था कि यह लिफाफा हमें वासुन पेपरके भाव पड़ जाता है । बापूने कहा "हाँ, मगर वह गोंदकी बोतल खटकती है। पहले लेही बनाकर बादमें असमें कुछ मिलानेके लिअ खोज करनेका विचार किया। मगर बादमें अससे दिल हटा लिया और बीचका रास्ता पसन्द किया।" जिसपर वल्लभभाभी कहने लगे. मध्यम मागवाले तो लखतरमें जाकर बैठ गये हैं।"
66 के खिलाफ भी हाजिरीका नोटिस वापस ले लिया गया है, यह पढ़कर मैंने कहा ये सब अक ही तरहकी दलीलके वश हो गये हैं।" चापूने कहा "हाँ, कमजोरीकी दलीलके वश हो गये हैं।" सरोजिनी देवीको शिमलेका निमंत्रण था। वहाँ जायें या न जायें, जिसपर बाकी राय माँगी थी बापूने राय देनेसे अिनकार किया । सरदारने दी। डाह्याभाभीसे कहा कहना कि न जायें।" es