1 It is resisting the passions, and not by serving them, that true peace of heart is to be found. Peace therefore is not in the heart of carnal man, not in the man who is devoted to outward things but in the fervent and spiritual man. " मनुष्य जब कोी अनुचित अिच्छा करता है, तब वह अस्वस्थ हो जाता है। कोसी असके काममें रुकावट डाले, तो असे तुरन्त क्रोध पैदा होता है । और अगर वह अपनी वासनाओं के अनुसार चलता है, तो विषयों के पीछे दौड़नेसे असे वांछित शान्ति कभी मिलती नहीं । अिसलिओ वह अन्तरात्माके पश्चात्तापके भारसे दब जाता है । अन्तरात्माकी सच्ची शान्ति विषयोंका सेवन करनेसे नहीं, परन्तु अनका शमन करनेसे मिल सकती है। अिसलिओ विषयी मनुष्यके दिलमें कभी शान्ति होती ही नहीं । अिसी तरह जो बाहरी चीजोंमें लुभाता है, असके दिलमें भी शान्ति नहीं होती । भक्त और आध्यात्मिक मनुष्यको ही शान्ति मिलती है।" 'नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य, न चायुक्तस्य भावना, न चाभावयतः शान्तिः' >
रैहाना बहनने 'जफर 'की अक गजल बापूको भेजी थी । असमें यह सुन्दर पंक्ति आती है : ज़फर आदमी असको न जानियेगा हो वो कैसा ही साहेबे फ़हमोज़का जिसे जैशमें यादे खुदा न रही जिसे तैशमें खौफ़े खुदा न रहा ।' ज़फ़र कहता है कि मनुष्य कितना ही बुद्धिमान हो, मगर असे जैश- आराममें खुदाकी याद न रहे और क्रोधमें खुदाका डर न रहे, तो असे आदमी नहीं मानना चाहिये। बापूसे मैंने कहा ." शौकतअलीके मुँहसे ये पंक्तियाँ बहुत बार सुनी ." क्यों न सुनी होंगी १ अन्हें झुर्दू कवियोंके बढ़िया वचन जबानी याद हैं। जब वे ये वचन सुनाते थे और अस जमानेमें जो बातें करते थे, अस वक्त भी वे भीमानदार थे। आज भी श्रीमानदार हैं। मुझे कभी जैसा नहीं लगा कि वे झूठ बोलवे या धोखा देते थे। आज वे मानते हैं कि हिन्दू विश्वासपात्र नहीं हैं और अनके साथ लड़ लेनेमें ही कोमका भला है। यह मनोदशा बुरी है । मगर कौमकी सेवा सुनके दिलमें है, उनका कोजी स्वार्थी हेतु नहीं है । जैसे ओमानदार आदमी बहुत मौजूद हैं-~मिसालके तौर पर सेम्युअल होर । असने. हम सबके मुँह पर कहा था कि मुझे आपमेंसे किसीकी बाप्प बोले.