पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२८१

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(5 जिसका कुछ भी असर अस नीचे गिरानेवाली शक्ति पर हो सकता है। अिसलिओ आदमी यदि अिस शक्तिकी अपेक्षा करे, तो कैसे बच सकता है ?" यह देवी और आसुरी सम्पत्तिका वर्णन नहीं तो और क्या है ? शूचेसे झूचे अर्थमें आत्मा श्रीश्वरमय होनेकी विशाल शक्तिका नाम है । " कितने ही प्राणी विलमें रहनेवाले होते हैं । वे अपनी जिन्दगी जमीनके भीतर ही बिताते हैं। कुदरतने अपने ढंगसे अिसका बदला अन्हें अच्छी तरह दिया है । असने जिनकी आँखें बन्द कर दी हैं । कितनी ही मछलियाँ अन्धेरे खड्डोंमें, जहाँ आँखकी जरूरत ही नहीं पड़ती, अपने रहनेकी जगह बनाती हैं। अन्हें भी असा करनेका भयंकर बदला कुदरतने दिया ही है । अिसी तरह आत्मा प्रकाशके बजाय अन्धेरेमें रहना पसन्द करे, तो सादे कुदरती कानूनसे ही आत्माकी आँखें बन्द हो जाती हैं और वह अपनी शक्ति गँवा बैठती है । अस मशहूर विरोधोक्तिका अर्थ यही है कि : 'जिसके पास कुछ नहीं है अससे जो कुछ होगा वह भी ले लिया जायगा ।' अिसलिले 'अिससे वह सिक्का ले लो।" अपने स्वरूपका भान न होना ही पापका मूल है। ीश्वर हृदयमें विराजमान है, अिस सत्यका अज्ञान है। यह भी असने अच्छे ढंगसे पेश किया है : ५ जिसका चित्त विषयी है, अीश्वरसे विमुख हो गया है और मीश्वरकी तरफ मुड़ नहीं सकता, असकी सिर्फ नैतिक ही नहीं, परन्तु आध्यात्मिक मौत भी हो गयी है । श्रीश्वरसे अलग होना, असकी अिच्छाके अधीन न होना और भीश्वरका ध्यान न धरना ही पाप है, यही नरक है | आत्माके श्रीश्वरके साय मेल न होनेको ही धर्मशास्त्र पापका मुख्य कारण मानते हैं । पापका अर्थ है ीश्वरको न मानना, ीश्वरमें श्रद्धा न होना ।" सेग्युअल होर कहते हैं कि जब तक भारतीय राष्ट्रसंघके सभी अंग संघमें मिलनेको तैयार नहीं हो जाते, तब तक संघके स्थापित होनेका अिन्तजार करना पड़ेगा । चिन्तामणि पूछते हैं कि अंगोंमें तो ब्रिटिश भारतके प्रान्त भी आ गये। क्या अिन प्रान्तोंकी भी मंजूरी चाहिये ? जैसी कल्पना तो हमें सपने में भी न थी । बाप्पू कहने लगे " अिसमें मुसलमानोंके साथके षड्यंत्रका अक और भी आगेका कदम है। मुसलमान प्रान्त कह सकते हैं कि जब तक जितनी शर्ते न मानोगे, हमें संघमें शरीक नहीं होना है।" जयकर, सप्पू और चिन्तामणि सब कड़ा विरोध कर रहे हैं । जिससे ज्यादा ये लोग कर भी क्या सकते हैं ? मिसेज लिण्डसे, मास्टर आफ वेलियलकी स्त्री, की आँखोंमें बसा हुआ अमृत अभी तक भुलाया नहीं जा सकता । असने अहिंसाकी की पहेलियाँ २५८ --