पहचान नहीं सकते । असे जीवनका समय योग ही जीश्वर है। अिसीलिसे हम सबमें रहनेवाले श्रीश्वरको जानना जरूरी है। जैसा शान वेहद और बेगरज सेवासे ही मिल सकता है।" रोला दो तीन जगह लिखता है कि अछूतोद्धारका झण्डा स्वामी विवेकानन्दने फहराया और गांधीजीने झुठा लिया। रोलौकी पुस्तक अक अितिहासकारकी है। वापसे पहले विवेकानन्द और दयानन्दने अछूतोंके अद्धारका सवाल झुठाया था। अिसलि यह कहना कि बापूको वह अत्तराधिकारमें मिला अितिहसिके खयालसे ठीक है । मगर मैंने वापसे पूछा " आपको यह सवाल सूझा तब अिन दोनोंकी यात मालूम थी ? तब बापूने कहा "मैंने विवेकानन्दकी राजयोगके सिवा और कोसी पुस्तक आज तक नहीं पड़ी है । दयानन्दके आर्यसमाजका पता था, लेकिन यह पता नहीं था कि अछूतोद्धारके कामकी अन्होंने क्या कल्पना की थी। अछूतोंकी सेवाका काम मेरी मौलिक सूझ है ।" मैंने कहा "शायद यह कहा जा सकता है कि दक्षिण अफ्रीकाके वातावरण और वहाँके आपके कामके कारण यह प्रश्न आपके सामने खड़ा हुआ और आपको यह काम हायमें लेनेकी सूझी हो।" बापू कहने लगे. "यह ठीक है; यह वहीं सूझी।" मैंने कहा . दरिद्रनारायण' शन्द विवेकानन्दका है, यह आप जानते थे? बापू "नहीं, मैंने तो अिसे पहले पहल दासबाबूसे सुना । और यह मानता था कि वह अन्हींका होगा । मगर बादमें मालूम हुआ है कि यह शब्द स्वामी विवेकानन्दका है। मीरा बहनका पत्र आया । वाके वाक्योंका यह भाव असे बहुत पसन्द आया कि जिन्दगी मौतकी तैयारी है। मौतके झूठे डर सम्बन्धी २२-६०३२ शेक्सपीयरके जो वाक्य असे याद आये और असने पत्रमें दिये, अनमें अक यह था “ Cowards die many times before their deaths, the valiants only taste of death, but once. " “कायर आदमी अपनी मौतसे पहले की बार मरते हैं । बहादुरोंको तो मौतका आनन्द अक ही बार मिलता है।" लेकिन बापूने कहा था कि अनका भाव अिनमें अकमें भी नहीं है । बापूने अिनमें हिन्दू मोक्ष भावना और बहादुरोंको अिंसी जन्ममें मोक्ष हो जाता है और अन्हें वापस नहीं आना पड़ता -- यह पढ़ा कि "I do not suppose.you have noticed that 'the valiants only taste of death but once' has a deeper meaning conveying the perfect truth according to the Hindu conception of salvation. It means freedom from the wheel of birth and २३९ "
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