- " मैं भी मानता हूँ कि हमारी भूलें होती हैं। ये डाकके डब्बे जलानेकी बात किसने सुझायी होगी ? अिसमें फजुल अपार हानि होती है । अिसलिओ आनन्दशंकर कहते हैं कि अिस तरहसे यह युद्ध मामूली लड़ाअियोंकी कक्षामें अतरता जा रहा है ।" मैंने कहा मगर बादके अद्गारोंमें असी कोभी बात है ही नहीं। 'हमारी लड़ामी भी लम्बी चली तो दोनों पक्षोंको वेशुमार नुकसान करके ही वन्द होगी । हम तो अिस युद्धमें अक भी पक्षकी अिष्ट सिद्धिका मार्ग नहीं देखते ।' अिन सब अद्गारोंमें अिस युद्धको ही गिरा दिया है । बापू- " नहीं, नहीं, अिस मतलब अितना ही है कि अहिंसाको हम भूल गये हैं। मैं " तो अन्हें कहना चाहिये था कि तुम अिन अिन मामलों में अहिंसाके मार्गसे गिर गये हो ।' बापू यह ठीक है, परन्तु यह आनन्दशंकरके वृतेसे बाहरकी बात है। अन्हें हमेशा न्यायाधीशकी जगह लेनेकी आदत है- नटराजनकी तरह । ये दोनों बुद्धिवादी हैं । हृदय धीरे धीरे पीछे चलता है। मगर न्यायाधीशका पद लें, अिसमें मुझे हर्ज नहीं है । हरओक अखबारवाला जजकी जगह लेता है । मगर जिससे अन्हें यह मान लेने की जरूरत नहीं कि दोनों पक्षोंमें अमुक तो सच होना ही चाहिये । अन्हें दोनों पक्षोंकी तटस्थ भावसे जाँच करनी चाहिये और फिर अक बिलकुल झूठा हो तो वैसा कहना चाहिये, अक की ही भूल हो तो असका पर्दा फाश करना चाहिये । यह आनन्दशंकरकी ताकत नहीं कि वह हमारी लड़ाभीकी जमा रकम बताये । अधारको बताकर कहेगा कि देखो, जिससे तुम्हारी जमाका सफाया हो जाता है ।"
आज वल्लभभाश्रीको मिले पत्रमें खबर है कि झुनकी ९० वर्षकी माँ अभी तक भोजन बनाती है । काशीभाभी अन्हें चीजें जुटा देते हैं और बुढ़िया दाल, चावल और साग पका देती हैं । यह भी भुस जमानेका अक चमत्कार है । दस साल पहले सुनसे खाना बनानेका काम छुड़वा दिया जाता, तो शायद वे अिनकार कर देतीं । आज तो ३० सालकी साधरण शिक्षा न पामी हुी स्त्री भी खाना पकानेसे घबराती है। सुपरिप्टेण्डेण्टने आज शिकायत की कि कल जो कमेटी आयी थी असके सामने कुछ कैदियोंने शिकायत की कि सुपरिटेण्डेण्ट सुनके २१-६-३२ चौकमें १३ तारीखके बाद नहीं आया, और अिस बीचमें पाखाने जानेका अन्हें पूरा वक्त ही नहीं दिया जाता । सुपरिप्टेण्डेण्ट कहता है कि मैं हर तीसरे दिन वहाँ जाता है, फिर भी ये बम्बभीसे आये हुओ कैदी