करनेवाले हैं, तब तक अन्हें निभाना चाहिये । असा न करें तो साथी बदते नहीं। कितनोंको तो मिलते ही नहीं । "अब तुम्हारे कामके सिलसिलेमें अक और बातकी जरूरत समझता हूँ। जो लोग दूसरे ढंगसे काम करते हों, अनसे भी सीख लेनेकी अिच्छा होनी चाहिये । शास्त्रीय प्रयोग अक ही ढंगले सफल हो सकता है यह माननेमें बड़ी भूल होती है। बहुत लोग असा मानते जार हैं, मगर असा मानकर वे खुद बहुत खोते हैं। हमारी वृत्तियाँ जैसी होनी चाहिये कि हमारे लिओ तो वही तरीका ठीक है जिसे हम सच्चा या पूग मानते हैं। मगर दूसरे लोग, जो अिसकी पूर्णताको न देख सकते या अिसकी अपूर्णताको जान सकने हों, वे जरूर दूसरी पद्धतिसे वाकी काम कर सकते हैं। भैसी भावनाका विकास करनेसे हमारी ग्रहणशक्ति बहती है। "तुम जिस वक्त जिस ढंगसे काम कर रहे हो, असके बारेमें मैं कुछ नहीं कह सकता । यानी तुम्हारे कामके प्रति पक्षपात होनेके कारण यहाँसे तो सब अच्छा ही अच्छा लगता है । वहाँ आँखोंसे देखें तो बिलकुल मुमकिन है कि मुझे की विचार आयें और वे तुम्हारे सामने रख सकूँ । यहाँ बैठे हुआ तुम्हारे कामका चित्र अच्छी तरह नहीं खींच सकता । अिसलिओ कोी भी सूचना देनेमें अविनय ही मालूम होगी।" भाभी जीवगमकी हालत जेठालालसे भी ज्यादा गैरमामूली है । अन्होंने लाख रुपया १९२२में दान किया था और जिस तरह सारी सम्पत्ति लुटाकर चाचाका वैर मोल ले लिया था। फिर व्यापार छोड़ा, फकीरी ली और आज ५० वर्षसे ज्यादा अम्रमें पत्नीको साथ लेकर वहाँ डेरा डाले हुआ हैं । छगनलाल गांधी-जैसेको जहाँसे तंग आकर और बीमार होकर वापस चला आना पड़ा था, वहाँ यह आदमी श्रद्धासे काम कर रहा है और दूसरोंको खींच रहा है। अिन दोनोंका विचार करते हुओ रोमाँ रोलॉकी पुस्तकका अक अंश याद आता है: In speaking of classes among workers, it is small matter for wonder that Vivekananda places first, not the illustrious, those crowned with the halo of glory and veneration, not even the Christs and Buddhas; but rather the nameless, the silent ones – the unknown soldiers. The page is a striking one, not easily forgotten when read: The great men in the world have passed away unknown. The Buddhas and
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