पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२५३

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& - लोग भूखों मरते हैं और जहाँ पहननेको पूरे कपड़े नहीं हैं, वहाँ चरखा अपने आप सजीवन हो गया, अिसे बापू शास्त्रीय प्रयोग नहीं कहते । मगर तुम्हारे प्रयोगको मैं शास्त्रीय कहता हूँ और अिसलिओ तुम पर सदा मेरी नजर रहती ही है । और तुम्हारे कामका शुरूसे लेकर आखिर तक हाल जाननेकी अिच्छा हमेशा ही रहती है । तुम अनुभवी हो अिसलिमे ज्यादा मुश्किलें तो तुम अब अनुभव करोगे । बड़े कामोंमें सदा जैसा ही होता रहा है । जब यह लगता है कि अब रास्ता साफ हो गया है अिसलिमे जल्दी प्रगति कर लेंगे यह मानकर जरा आराम लिया कि तुरन्त खासी नजर आ जाती है । अिसलिओ तुम्हें वहाँ समाधि लगाकर बैठ जाना चाहिये। पहली चीज तो अटूट धीरज है । जैसे धोरजके लिअ आत्मविश्वास होना चाहिये । और आत्मविश्वासका अर्थ है अपने काममें अटूट श्रद्धा । अितना हो जाय तो फिर अनजानमें बेशुमार भूलें होती हों तो भी चिन्ताकी कोभी बात नहीं रहती । कहीं हम भूल तो नहीं करते, अिस डर ही डरमें सुखनेकी कोमी जरूरत नहीं। तुम्हारे प्रयोगको मैं शास्त्रीय मानता हूँ, अिसका अर्थ मेरे मनमें यह नहीं है कि वह आज ही पूरी तरह शास्त्रीय है । मगर तुम्हारे काममें शास्त्रीय प्रयोगके लक्षण हैं । और अिस तरहके प्रयोगोंमें जो धीरज चाहिये वह भी तुममें है। अक बातकी कमी मैंने तुममें पहले ही देख ली थी। मगर मैंने असा माना कि वह कमी तुमने समझबूझकर दूर कर ली है, या तुम जानते भी न हो अिस ढंगसे तुम्हारी सत्यनिष्ठाके कारण वह दूर हो गयी है । वह कमी यह थी : अधूरे कामसे सन्तोष मानकर तुम झट अनुमान लगा लेते थे। यह मैं अब तुममें नहीं देखता। शास्त्रीय प्रयोग करनेवाला अपनेमें अटूट श्रद्धा रखनेके कारण कभी निराश नहीं होता। मगर असके साथ साथ असमें अितनी ज्यादा नम्रता होती है कि वह अपने कामसे सन्तोष नहीं कर लेता और जल्दी जल्दी अनुमान नहीं लगा लेना । मगर समय समय पर गहरामीसे हिसाब लगाने के वाद निश्चयपूर्वक कहता है कि अिसका परिणाम यही आयेगा । औसी शास्त्रीय नम्रताकी कमी हम सबमें है। अिसलिये तुममें जो बात मुझे नजर आयी थी, वह कोसी आश्चर्यकी बात नहीं थी । सिर्फ मैंने यह माना है कि तुममें अन्त तक जानेकी शक्ति है । अिसलि यह कमी भी तुममें न हो, अिस तीव्र अिच्छासे वर्षों पहले बहुत धीरेसे तुम्हारा ध्यान अस बातकी तरफ खींचा था । कामकी सफलताके लिओ तुम्हें पहली जरूरत साथी जुटा लेनेकी है । तुम्हारी साधना जैसी है कि धीरे धीरे साथी मिल ही जायँगे । अन्हें जुटाने के लिओ अक गुणकी पड़ती है - सहिष्णुता और असके, पेटमें रहनेवाली अदारता । हम जो कुछ करें या करना चाहें वह सब साथी असी तरह नहीं कर सकते । लेकिन जब तक यह लगे कि वे अच्छी नीयतवाले और कोशिश २३० सुपासना हमें करनी